Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 31
________________ (२९) स्वामीको मैं वंदन करता हूँ। इस प्रकारसे मैंने स्तवना की, जिन्होंने ! कर्मरूप रज मैल दूर किये हैं, जिन्होंने जरा और मरणके दुःख क्षय कर दिये हैं ये चौवीस तीर्थङ्कर रागद्वेषको जीतनेवाले मेरेपर प्रसन्न हो । जिनकी कीर्ति की, वन्दना की, पूजा की, जो लोगों में उत्तम सिद्ध भगवान हुए हैं, वे (मुझे) आरोग्यता, समकितका लाभ (और) उत्कृष्ट प्रधान समाधि दें । चन्द्रसमुदाय से अधिकनिर्मल सूर्य समुदाय से अधिक प्रकाश करनेवाले ( स्वयंभूरमण ) समुद्र जैसे गंभीर, ऐसे सिद्ध परमात्मा मुझे मुक्ति दो । ॥ अथ सामायिकका पञ्चक्खाण || करोमि भते सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जान नियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं, न करेमि, न कारवेमि, तस्स भते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ इसके बाद इच्छामिखमासमणो ० इच्छा कारेण संदिस्सह • भगवन् बेसणे संदिसाहुं ? ' इच्छं ' इच्छामि खमासमणो ० इच्छा० बेसणे ठाउं इच्छं इच्छामि खमासमणों० इच्छा० 1 सज्झाय संदि साहुं ? ' इच्छं ' फिर इच्छामि खमासमणो ० इच्छा० सज्झाय करूं ? ' इच्छं ' पीछे तीन नवकार पढ़कर दो घड़ी ( ४८ मिनिट ) तक धर्मध्यान - स्वाध्यायादिक करे पीछे पारे देखो विविमें ।

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