Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 30
________________ (२८) . पुरुषोंको ये ५० बोल ही कहने चाहिए; परन्तु स्त्रियोंको ३ लेश्या, ३ शल्य, और ४ कपाय इन दश वोलोंके सिवाय (विना) ४० ही कहने चाहिए। फिर खमासणा देकर इच्छाकारेण संदिसह भागवन् सामायिक संदिसाहूं ? ' इच्छं' कहे, फिर इच्छामि खमा० इच्छा० भगवन् . सामायिक ठाउं 'इच्छं। कहके खड़े होकर दोनो हाथ जोड 'एक नवकार पढकर इच्छकारी भगवन् पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी ऐसा कहकर अपने ही (स्वयं) अथवा गुरुमुखसे करेमि भन्ते उच्चरे या उच्चरावे । ___ अर्थ-लोकको केवलज्ञान द्वारा उद्योत करनेवाले, धर्मतीर्थके प्रवर्त्तानेवाले, रागद्वेषको जीतनेवाले, कर्मरूप शत्रुको हनन करनेवालोंकी ( मैं ) स्तुति करता हूँ जो केवलज्ञानी हैं ऐसे। चौवीस तीर्थकरादिकी । (१) श्री ऋपभदेव तथा (२) अजितनाथको वन्दन करता हूँ। तथा (३) संभवनाथ (४) अभिनन्दन और (५) सुमतिनाथको (६) पद्मप्रभ (७) सुपार्श्वनाथ तथा राग द्वेष जीतनेवाले चन्द्रप्रभको वन्दन करता हूं। (२) सुविधिनाथ तथा (पुष्पदन्त) ऐसे दो नाम हैं जिनके (१०) शीतलनाथ, (११) श्रेयांसनाथ, तथा (१२) वासुपूज्य स्वामीको (१३) विमलनाथ, (१४) अनन्तनाथको, जो रागद्वेषके जीतनेवाले हैं (१५) धर्मनाथ, (१६) शान्तिनाथको मैं वन्दन करता हूँ। (१७) कुंथुनाथ, (१८) अरनाथ तथा (१९) मल्लिनाथको (२०) मुनिसुव्रतस्वामी (२१) नमिनाथको (२२) अरिष्ट नेमिको मैं वन्दन करता हूं। (२३) पार्श्वनाथ (२४) श्री वर्धमान (महावीर) - पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के प्रापअनन्यतमाशयह एप उगा द्वारा सम्पन्न प्राध्यात्मिक क्रान्ति में आपका अभूतपूर्व योगदान है। उनके मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियों आपकी सूझ-बूझ एवं 'सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं। - -

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