Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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(1 ) ॥ अथ इरिया वहियं ॥ _इच्छा कारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिकमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिकभि ॥२॥ इरियावहियाए विराहणाए ॥ २॥ गमणा गमणे, ॥ ॥ पाणकमणे, वीयकमणे, हरिचकमणे, ओसा, उत्तिंग पणग दग, मट्टी, मकडा, संताणा, नंकमणे, ॥ ४॥ जे मे जीवा विराहिया ॥५॥ एगिदिया, वे इंदिया, ते इंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया ॥६॥ अभिया, वत्तिया, लेसिया, संघाझ्या, संघ. टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणा
ओ ठाणं सकामिया, जीवियाओ, ववरोदिया, तस्म मिच्छामि दुक्कडं ॥ ७ ॥
अर्थ- हे भगवन् ! (अपनी) इच्छापूर्वक आदेश दो (तो) रास्ते चलत जो पाप लगा होवे उससे मैं निवर्ते : (तब गुरू कहे पडिक्कमह-निवौं) आपकी आज्ञा प्रमाण हैं, मैं मेरे मनकी इच्छापूर्वक पापसे निवर्तनकी इच्छा करता हूँ।मार्गमें चलते जिन जीवोंकी विराधना हुई होवे, जाने आनमें जो कोई नीव खूदे, सुके हरे वीज खूदे, हरी बनस्पति बूंदी, ओसको, चिटियोंके विलोंको, पांच रंगकी काई-नील फूलन आदिको कच्चे पानीको, सचित्तमिट्टीको, मकडीके जालोंको मसलायाखूदा, जिन जीवोंकी मैंने विराधना की या दुःख दिया हो, एक इन्द्रियबाले-पृथ्वी, जल, अग्नि वायु.
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