Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 16
________________ नाथको तथा मुनियोंके इन्द्र श्री नेमिनाथको, त्रिभुवनमें प्रकाश करनेवाले श्री पार्श्वनाथको अच्छे गुणोंके एक अद्वितीय स्थानक ऐसे श्री वर्द्धमान स्वामीको (मैं) भक्तिपूर्वक वन्दना करता हूँ.। . (विधि)-पीछे यदि प्रत्याख्यान करना हो तो इच्छामि खमासमणो० पूर्वक नवकारसीसे चउविआहार उपवास पर्यन्त यथाशक्ति पच्चरखाण करें। . ॥ नमुक्कारसहि मुठिसहिका पञ्चक्खाण ॥ उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिअं मुंडिसहि पञ्चक्खाइ । चउव्विहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइम, साइमं । अन्नथणा भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं वोसिरामि ।। अर्थ--(उग्गए सूरे) सूर्योदयसे दो घड़ी पीछे नम्मुक्कारमहिअं मुद्विसहिअं पञ्चक्खाइ नवकार कहके मुठीवालके पारू वहां •तक नियम है ( यहां नवकार कहके मुठिवालके पञ्चवखाण पारना है इसलिये इसको नोकारसी मुडिसी कहते है। ___ (मुठिसहि)का मतलब यह है के जहां तक पच्चक्खाण पालकर मूठि न खोलुं वहां तक पञ्चवखाण रहै। चौविहंपि आहारं अशन (अन्न) पाणं (पानी) खाइमं (मेवा दूध आदि).साइमं (पान सोफारी इलायची आदि स्थादिष्ट) इन चार आहारका पञ्चक्खाण करनेमें चार प्रकारके आगार कहे हैं। __ अन्नथणा भोगेणं ( भूलसे अथवा विना उपयोगसे भांगा लगे तो दूषण नहीं] . पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के आप अनन्यतम . . . एव उ.. द्वारा सम्पन्न प्राध्यात्मिक क्रान्ति में प्रापका प्रभूतपूर्व योगदान है। उनके मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियाँ प्रापकी सूझ-बूझ एवं सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं।

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