Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 15
________________ श्वास लेनेसे. खांसी मानेसे, छींक आनेसे, जमाही (बगासी) आनेसे, डमार आनेसे, नीचेकी वायु सग्नेसे, चक्कर आनेसे, पित्तके प्रकोपसे मूळ आजावे, अंगके सूक्ष्म संचारसे सूक्ष्म थूक. अथवा कफ आनेसे सुक्ष्म दृष्टिके संचारसे, इन । पूर्वोक्त वारह आगारोंको आदि लेकर अन्य आगारोंसे अखंडित, अविगधित. (सम्पूर्ण ) मुझे काउस्सग होवे। जहांतक अरिहंत भगवंती नमः स्कार करता हुआ न पारूँ, वहांतक कायाको एक स्थानमें मौन रखकर नवकार आदिक ध्यानमें लीन होनेके लिए आत्माको वोसिराता हूँ। एक नवकारका कायोत्सर्ग करना. चाहिए। का समाग पूरा हो जानेपर “नमोअरिहंताणं" कह कर पारना और * नमोऽईत' सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः कह कर नीचे लिखी स्तुति कहनी चाहिए। ॥ कल्लाण कंदं स्तुति ॥ कल्लाण कंदं पढमंजिणंद, संति तओ नेमिजिणं मुर्णिदं ॥ पासं पयासं सुगुणिक टाणं, भत्तीय वंदे सिरि बदमाणं ॥१॥ . (विधी)-इसके बदले दूसरी स्तुति इच्छा हो वैसी बोल सकते हैं। अर्थ-कल्याणके मूल श्री प्रथम जिनेश्वरको, श्री शान्ति . (नोट) स्त्रीयोंको यह न कह कर केवल (नमो अरिहंता'ण करके स्तुति रहना चाहिये। - -

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