Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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होती है इस प्रकारसे) हाथ जोड़ कर मस्तकसें लगाकर "जयवीयराय" पढ़ना चाहिए ।
॥ जयवीयराय ॥
जयवीयराय जगगुरु होउ ममं तुह पभावओ भयवं । भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठ फल सिद्धि ||१|| लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परथ्थकरणंच ॥ सुह गुरु जोगां तव्वय, ण सेवणां आभवमखंडा ॥२॥ वारिज्जइ जविनिआ ण बंधगं वीयराय तुह समए ॥ तहवि मम हुज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥ ३ ॥ दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि मरणं च बोहि लाभोअ ॥ संपजउ मह एअं, तुह नाह पणाम करणेणं ॥ ४ ॥ सर्व मंगल मांगल्यं, सर्वकल्याण कारणं ॥ प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥
विधि--- बाद में पैरोंके अंगूठोंके पास चार अंगुलका और एडियों के पास इससे कुछ कम फासला रख कर खड़े होकर हाथोंसे योगमुद्रा साधन करते हुए शेप विधि करना चाहिए । ॥ अरिहन्त चेइयाणं ॥
अरिहन्त चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं ॥ १ ॥ वंदण वत्तिआए, पूअण वत्तिआए ॥ सक्कार वत्तिआए,
* यहां तक पढ़कर आगेकी गाथाएं मुख आगे दाथ करके पढ़ना ।
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