Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ (१७) - ॥अथ अन्भुठिओ॥.. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अन्भुटिओमि अभितर देवसिखामे ? इच्छंखामेमि देवसि विधि-आगेका पाट पञ्चांग निचे झुकाके दाहीना (जीमना) हाथ नीचे स्थापकर वोटनका है। जंकिंचि अपत्ति, परपत्तिअं, भत्ते पाणे, विणए,वेआवच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरीभासाए, जंकिंचि मज्झविणय परिहीणं सुहुमंवा वायरंवा । तुन्भेजाणह, अहं न याणामि तस्स मिच्छामि दुकडं। अर्थ-हे भगवन् ! (अपनी) इच्छा करके आदेश दो तो दिवसमें किये हुए अपराधोंको खमानेके लिये मैं खड़ा हुश हूं। (तब गुरु कहें 'खामेह' अर्थात् समाओ) फिर आगे कहना कि मैं भी यही चाहता हूँ। दिवस सम्बंधी पापोंको खमाता हुँ जो कोई अग्रीतिभाव, विशेष अग्रीतिभाव उत्पन्न किया हो, आहार में, पानीमें विनयमें, वैयावृत्तमें, एकबार बोलाने में, वारम्वार वोलाने में आपसे उच्च आसन पर बैठनेमें, आपके बरावर आसनपर बैठनेमें, आपके बीचमें बोलनमें आपकी कही हुई बात विशेषतासे कहनेमें जो कोई मैंने अविनय किया हो, छोटा अथवा बड़ा, आप जानते हैं, मैं नहीं जानता वे मेरे सर्व पाप मिथ्या होवें। विधि-फिर यदि पचवखाण करना हो तो एक खमासमण देके खडे होकर गुरु मुस्खसे लेना चाहिए। और जब घर आवे तो

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35