Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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... सहा-सागारेणं. ( कोई भी कार्य करते अकस्मात् अथवा स्वभाविक मुंहमें कोई चीज आवे तो दूषण नहीं.. जसे के सकर तोते समय उड़कर मुहमें आवे या बरसातकी फुवारे वगेरे। . . महत्तरागारेणं, कोई महत्कार्य उस वृत पञ्चखाणके फलसे भी अधिक फल देखकर वृहत्पुरषोंके कहनेसे भंग लगे तो दूषण नहीं।
सत्वसमाहिवत्तिया गारेणं. कोई बड़ी बीमारीसे असमाधि अथवा सादिक काटनेसे वेहोस (मूर्छित हो जानेसे दवाई कोई देवे तो दूषण नहीं । गुरुवोसिरे कहे. परन्तु पञ्चक्खाण लेनेवालेको वोसिरामी कहना चाहिये । इसके बाद कोई भी स्तोत्र अथवा स्तुतिके श्लोक इच्छा हो तो कहे । बादमें और भी आसपास वहां प्रतिमा विराजमान हो तो जाकर तीन खमासणादि नमस्कार करे।
त्रिकाल पूजन करना भी शास्त्रमें कहा है सो यथाशक्ती करने योग्य है। · . पीछे तीनवार 'आवस्सहि (इसका मतलब यह कि जो प्रतिज्ञा करी थी उसकी छुट हुई ) कहके घंटा बजाते हुए जैनालयसे बाहर जाना चाहिये। श्री मंदिरजीमे जघन्यसे १० मध्यम ४२ और
उत्कृष्ट ८४ आसातना वर्जना चाहिये। - दश बड़ी आसातनाके नाम ।
१ तांबूल (पानखाना) २ पानी (जलपीना) ३ भोजन (खाना) ४ उपानह (जोड़ा) ५ मैथुन ( कामचेष्टा) ६ शयन (सोना) ७.थूकना (खुखार ):८ मात्रा ( पेसाब करनी) याने