Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ हित करनेवाले हैं, लोकमें दीपक समान हैं, लोकमें प्रकाश करनेवाले हैं, अभय दान देनेवाले हैं, श्रुतज्ञान रूप चक्षुके देनेवाले हैं, मोक्षमार्गके देनेवाले हैं, शरण देनेवाले हैं, समकित देनेवाले हैं, धर्मके दाता हैं, धर्मके उपदेशक हैं, धर्मके नायक हैं, धर्मके सारथी .. चारगतिका अंत करनेवाले श्रेष्ठ धर्म चक्रवर्ती हैं, पीछे नहीं जानेवाले ऐसे उत्तम केवलज्ञान, केवल दर्शनके धारक हैं, जिनकी छमस्थावस्था दूर हुई है, रागद्वेपको जीतने और जीतानेवाले हैं, संसारसे तरने और तरानेवाले हैं, तत्त्वके जाननेवाले हैं (तया) जनानेवाले हैं, कर्मसे मुक्त और मुक्त करानेवाले हैं, सब जानने वाले हैं, सब. देनेवाले हैं, उपद्रव रहित, निश्चल, निरोग, अनन्त, अक्षय, अव्यावाध अर्थात् पीड़ा रहित, जो पुनरागमसे रहित हैं, ऐसी सिद्ध गति है नाम जिसका, ऐसे स्थानको प्राप्त किये हुए हैं। उन रागद्वेषके क्षय करनेवालों (और) सब भयादिक जीतनेवालोंको (मेरा) नमस्कार हो । जो अतीत कालमें सिद्ध हुए, जो अनागतकालमें सिद्ध होंगे (और, जो वर्तमानकाल (महाविदेह क्षत्र)में होते हैं, उन सबको त्रिविध ( मन, वचन और काया) से मैं वन्दन करता हूँ। . . ॥ जावंति चेइआई ॥ जावंतिचेइआई, उद्वेअ अहेअतिरिअलोएम ॥ . सव्वाइं ताई वंदे, इह संतो तथ्थ संताई ॥१॥ : अर्थ-जितने भगवान्के मन्दिर प्रतिमाएं हैं, उर्वलोकमें iiii क लोकमें, उन सत्रको यहाँ रहा .

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35