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तपश्चर्या
कमी है, यह आरोप स्वीकार कर भी मुझे कहना चाहिए, अथवा मुझे परोक्प पूजा रुचती नही । अनेक भोले लोगों को भ्रम में खाने का यह सीधा रास्ता है । इस प्रत्यक्ष भौतिक माया की अपेक्पा शास्त्रीय और कवियों की वाङ्माया ( शब्द - माया ) बहुत विकट होती है ।
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