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एक वर्ग ऐहिक सुखो में लिप्त रहता था। मद्यपान और विलास में ही यह वर्ग जीवन की सार्थकता समझता था। दूसरा एक वर्ग ऐहिक सुखो की कुछ अवगणना करता, लेकिन स्वर्ग में उन्ही सुखो को प्राप्त करने की लालसा से मूक प्राणियो का बलिदान कर उन्हें देवो के पास पहुँचाने के काम में लगा हुआ था। तीसरा एक वर्ग इससे उलटे ही मार्गपर जा शरीर का अंत होने तक दमन करने में फंसा था।
४. मध्यम मार्ग:
इन तीनों मार्गों में अज्ञान है, ऐसा बुद्ध ने समझाया। संसार और स्वर्ग के सुख की तृष्णा तथा देह-दमन से स्वयं का नाश करने की तृष्णा और दोनो सिरे की इच्छाओ को त्याग कर मध्यम मार्ग का उन्होंने उपदेश किया। इस मध्यम मार्ग से दुःखों का नाश होता है, ऐसा उनका मत था।
५. आर्य सत्य:
मध्यम मार्ग यानी चार आर्य सत्यों का ज्ञान । वे चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं:
१.जन्म, जरा व्याधि, मरण, अनिष्ट-संयोग और इष्ट-वियोग ये पाँच दुःख रूपी पेड़ की शाखाएँ हैं। ये पांचों दुःख रूप हैं अर्थात अनिवार्य हैं । ये अपनी इच्छा के अधीन नहीं हैं। इन्हें सहन करनेपर ही छुटकारा है। यह पहला आर्य सत्य है।