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बुद्ध
समझ कर भी सच न मान लो। ऐसा होनेवाला है, यह समझकर भी सच न मान लो। लौकिक न्याय समझकर भी सच न मान ली। सुन्दर लगता है इसलिए भी सच न मान लो। प्रसिद्ध साधु हूँ, पूज्य हूँ, यह समझकर भी सच न मान लो। तुम्हें अपनी विवेकबुद्धि मंरा उपदेश सच लगे तो ही तुम इसे स्वीकार करो।"
२. दिशा-चन्दनः
उस समय कितने ही लोग ऐसा नियम पालते थे कि प्रात: काल स्नान कर पूर्व, पश्चिम, दक्पिण, उत्तर, उर्ध्व और अघो इन छः दिशाओ का वन्दन किया करते । बुद्ध ने छः दिशा इस प्रकार पताई है: '
स्नान कर पवित्र होना ही पर्याप्त नहीं है। छः दिशाओको नमस्कार करनेवाले को नीचे लिखी चौदह वातो का त्याग करना चाहिए:
१. प्राणघात, चोरी, व्यभिचार, असत्य-भापण ये चार दुखरूप फर्म,
२. स्वच्छंदता, द्वेप, भय और मोह ये चार पाप के कारण
और
३. मद्यपान, रात्रिभ्रमण, खेल-तमाशे, व्यसन, जुआ, कुसंगति और आलस--ये छः सम्पत्ति नाश के द्वार।
इस प्रकार पवित्र हो, माता-पिता को पूर्व दिशा समझ उनकी पूजा करना। यानी उनका काम और पोपण करना, फुल में चले आए