Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ अहिंसा के नये पहाड़े १२३ १८. नए पहाड़े ये अहिंसा के नये गुरू या पहाड़े हैं। हमें अपने व्यापार में इनके अाधार पर हिसाब करना सीखना चाहिए। अगर मनुष्यसमाज के व्यवहार में हमने इन्हें दाखिल नही किया तो छोटे-छोटे जीवो की रक्षा की जो हम चिन्ता करते हैं वह, और हमारी सारी दान-वृत्ति अहिंसा का मजाक हो सकता है। कोई ऐसा न समझे कि मै जीवदया को निकम्मी चीज समझता हूँ। वह भी आवश्यक है। उसके लिए जो कुछ किया जा रहा है, उसमें कुछ संशोधन की जरूरत भले ही हो, लेकिन जो कुछ किया जा रहा है, उसे कम करनेकी सिफारिश नहीं करता। परन्तु मनुष्यों के परस्पर व्यवहार मे अहिंसा दाखिल करने की जरूरत इसकी अपेक्पा कही अधिक महत्त्व की है। इस घष्टिसे निम्न प्रकार के व्यक्तिगत निश्चय किये जा सकते हैं: १. मनुष्य की हिसा करनेवाली प्रवृत्तियों या व्यापारों मे अपना निजी या धर्मादाय का पैसा न लगाना। २. किसी भी व्यापार में मूलधन पर जिससे दो या ढाई प्रतिशत से अधिक व्याज मिले इतना नफा न लेना। ३. सट्टा और जुआ समान मानना। ४. शरीर-परिश्रम करनेवाले व्यक्ति को कर्ज देनेका मौका आवे तो बम्बई जैसे बड़े शहर में जबतक वह कम-से-कम डेढ़-दो रुपया रोज कमाई न कर सके तबतक उससे व्याज न लेना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163