Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 157
________________ महावीर का जीवन- धर्म १४३ जैन धर्म का खास अंग माना गया है । अहिंसा परम धर्म है । इसे सिद्धान्त रूप में वैदिको और बौद्धो ने भी माना है, लेकिन उसे आचरण में उतारनेवाले महावीर ही हैं, यह मान्यता है। जीव का घात न करना इस अर्थ में जैन अहिंसाधर्म को बहुत ही बारीकी में ले गए हैं । इस विषय में नहीं, लेकिन आज की स्थिति देखते हुए 'अहिंसा' शब्द बोलते हुए भी शर्म आती है । ३०. अहिंसा की विकृति : आज हमारे मन में अहिंसा का अर्थ ऐसा हो गया है जैसे उसे रक्त से रंग दिया हो । यदि कहीं रक्त से मिलता हुआ रंग दिखाई दे तो हम उसे देख नहीं सकते । फिर वह किसी मनुष्य या प्राणी का घाव हो, मसूर की दाल हो, पके टमाटर हो या लाल नवकोल की शाक हो या तरबूज हो या गाजर हो । इस रंग को दिखाये बिना यदि हमारे बर्ताव से कोई मनुष्य पिस-पिस कर मर जाय, हम उसका सर्वस्त्र छीनकर उसकी हड्डी पसली चूस लें तो भी हमें ऐसा भान नहीं होता कि हम हिंसा करते हैं । लेकिन यदि कोई गाड़ी के नीचे कुचल जावे अथवा किसी का घाव फूटे या घमन में रक्त देख लें; तो हमारी हिम्मत नही कि हम ग्लानि के बिना अथवा हुबक आए बिना समीप खड़े रह सकें और उसकी देखभाल कर सकें। लेकिन अहिंसा अर्थात् रक्त या रक्त से मिलते रंग की ग्लानि नहीं है, अहिंमा अर्थात् प्रेम या दया है। हिंसा यानी In

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