Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ - में या शहर में रहनेका फर्ज नहीं है। लेकिन यदि उसने ऐसे लम्वन्ध किए हों, तो उन सम्बन्धों को विवेक और प्रेम से निवा-हने का फर्ज अवश्य है । विवाह किया यानी धन्धन हो गया । आपका फर्ज हो जाता है कि आप अपनी स्त्री को अपने सुख-दुख की उन्नति और अधोगति की हिस्सेदार बनाकर अपना और उसका दोनों के उद्धार का मार्ग साथ रहकर पार करें। उस स्त्री के सर जाने के बाद, आप जैसे एक पशु के मरजाने के बाद दूसरा पशु लाते हैं, वैसे दूसरी श्री नहीं ला सकते। यह राम के मार्ग से, महावीर के मार्ग से सब साधुपुरुषों के मार्गों से उल्टा है। यह पशुता है, मनुष्यता नहीं है। उस स्त्री को आप दुत्कार नहीं सकते, सार नहीं सकते, उसका त्याग नहीं कर सकते। १८. लन्तान के प्रति कर्तव्य : .. विषयोपभोग करना आपका फर्ज नहीं है । लेकिन आप घर नसावें और बच्चे हुए कि उनका बन्धन आपको स्वीकार करना ही होगा।जैसे बकरे और मुर्गे-मुर्गी पालनेवाला उनके बच्चों के आधार पर ही उनकी कीमत करता है। वैसे ही आपके बच्चे कितने पैसे कमाकर लावेंगे इस भावना से माप उनकी ओर नहीं देख सकते। आपका फर्ज यह नहीं है कि आप उनके लिए खूप पैसा खर्च करके उनका पोषण करें या उनके लिए पैसा छोड़कर मरें, लेकिन फर्ज तो यह है कि आप उनका पोषण करें, उनकी शुभ कामनाओं को बढ़ावा दें। जिस संसार में आप लुब्ध हुए हैं उसमें लुन्ध होने की.

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163