Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 138
________________ ૨૨૨ भाषण हिस्सा उसे बैठे-ठाले साथीदारों को देना पड़ता है। और फिर इन साथीदारों का हिस्सा सिर्फ नफे में ही होता है, नुकसान में नहीं। १५. हम इस आर्थिक व्यवस्था के जितने आदी हो गये हैं कि इसमें नामुनासिब क्या है, यही हममें से बहुतेरो के ध्यान में नहीं आता। लेकिन यदि हम सीधा विचार करें तो हमें विदित होगा कि सोने-चांदी का सिक्का स्वयं बाँझ है। उसमें नफा पैदा करने की शक्ति नहीं है। जो अधिक कीमत मिलती है वह मजदूर की मेहनत की है। इसलिए व्याज के मानी है कारीगर या मजदूर की मेहनत में से लिया जानेवाला हिस्सा । अगर यह हिस्सा इतना बड़ा हो कि हम उसकी बदौलत ऐश-आराम में रह सकें और मेहनत करनेवालों को हमेशा तंगी में रहना पड़े, तो उस व्यवस्था में हिंसा होनी ही चाहिए। १६. इक्केवाले के घोड़े को सिर्फ खुराक ही मिल सकती है। दिन भर की कमाई चाहे एक रुपया हो या दस रुपया हो, उसके हिस्से में कोई फर्क नहीं पड़ता। उसी तरह हमारे देश में मेहनतमजदूरी करनेवालों को कोरी खुराक ही मिल सकती है। अच्छी फसल या बाजार की तेजी का उसे कोई लाभ नहीं मिलता। १७. व्यापार का यदि यह आवश्यक लक्षण या परिणाम हो, तो यह व्यापार उस व्यापार को निवाहनेवाली सामाजिक तथा राजकीय व्यवस्था और आन्तर्राष्ट्रीय नीति तथा देश-रक्षा की सामग्री, इन सबको हिंसा की ही परम्परा कहना होगा।

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