Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 145
________________ महावीर का जीवन धर्म १३१ मार्ग शोधें, ऐसे कर्म का विचार करें जिनसे इन गुणों का उदय हो । भक्त जमा होकर महावीर का गुणानुवाद करें, उनकी महिमा का विचार करे और उनकी मूर्ति को प्रेम से हृदय में धारण करें । जिज्ञासु ज्ञानी सद्गुरु की खोज करके उनका समागम करें और साधना करें, अथवा अनुभव की दृष्टिसे आपस में तत्व चर्चा करें । १०. तीनों वर्ग अभिन्न है : आप यह न मानें कि ये तीनों वर्ग एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं। सबमें कुछ-कुछ अंशों में तीनों वृत्तियाँ होगी। लेकिन अपने जीवन के अमुक काल में प्रत्येक मनुष्य विशेष कर उपासक भक्त या जिज्ञासु होता है । ११. बड़े जल्सों में लाभ नहीं : जयंती मनाने के लिए ऐसे अनुयायियों के छोटे-छोटे मंडल बनाने में हानि नहीं, बल्कि लाभ है । बड़े भारी मजमो में वृत्तियाँ बिखर जाती हैं और बाह्य उपाधियों बढ़ जाती हैं। ऐसे मंडल न बहुत बड़े न बहुत छोटे, एक दूसरे के साथ मेल खावें ऐसे स्वभावचाले लगभग एक ही वृत्ति के मनुष्यो के हो तो बहुत लाभ होगा । मैं आपके सामने यह बात विचार के लिए रखता हूँ कि आप ऐसे घड़े जल्से और जुलूस निकालने के बदले उपासक, भक्त और जिज्ञासु बनें और ऐसी जयतियो के प्रसंग पर छोटे सत्संगी मंडलो की रचना कर इस तरह मनावें कि आपकी शुभ वृत्तियो का उत्कर्ष हो । यदि आप गंभीर रूप से महावीर के अनुयायी हैं तो बड़े जल्सों से दूर रहने में आपका लाभ है । और यदि वह गांभीर्य न

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