Book Title: Buddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Author(s): Kishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 147
________________ महावीर का जीवन-धर्म भाई के बच्चों में भेद नहीं माना होगा। संकुचित वृत्ति को अप हृदय में पोपित नहीं किया होगा। इससे उल्टे जहाँ माता-पिताओं अपने बच्चो का लालन-पालन उन्हे खूब माल-मिठाइयाँ खिलाक और उनके लिए खुले हाथो पैसा उड़ाकर तो किया है लेकिन हृद के स्वाभाविक प्रेम से नहीं, जहां उन्हें अपने माता-पिता परायो व चरह भासित होते हैं और उनके लिए मन खोलकर हृदय की स घातें करने का वातावण नहीं है, जहाँ छोटे भाइयों को अपने ब भाइयों से बचने के लिए इस तरह प्रयत्न करने पड़ते हैं मानो उनके दुश्मन ही हो, जहाँ ऐसा अनुभव होता है कि सारे कुटुम्द सिर्फ स्वार्थ के ही साथी हैं, वहाँ किसी भी तरह के ऊँचे गुणोक पोषण नहीं होता। ऐसे कुटुम्बोमें से पर-दुःख भंजक मनुष्य व निकलना कठिन है। कारण कि वहाँ सम-भावना की वृत्ति बहुत कुछ कुठित हो जाती है। १५ प्रेम-निरोधी वैराग्य : ईस कौटुम्बिक प्रेम पर मैं आज की राष्ट्रीय सम-भावना थुग में अत्यंत आग्रह-पूर्वक जोर देता हूँ। स्योंकि मुझे दिनपर दिन अधिक से अधिक विश्वास होता जा रहा है कि हमारी हिन्द समाज की निर्बलता का अपनी छिन्न-भिन्न स्थिति का मूल कारण हमारे कुटुम्बों में ही है। माता-पिता और पुत्र, भाई-भाई, माई घहन, पति-पत्नी, मित्र-मित्र, सेठ और नौकर के बीच हार्दिक प्रे हो, यह हिन्दू कुटुम्ब की आज सामान्य स्थिति नही है। हमा ! पोपित सारी विचारसरणी ही इस प्रेम-वृत्ति की विरोधी है। हम ७. On .EER.

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