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बौद्ध शिक्षापद उत्तम है अग्निशिखासम तप्त लोहे का भक्पण। नहीं असंयमी दुष्ट बन उत्तम राष्ट्रान्न का भोजन ।'
१.प्रत्येक सम्प्रदाय प्रवर्तक अपने शिष्यो का बर्ताव, सदाचार, शिष्टाचार, शुद्धाचार, सभ्यता और नीतिपोपक हो इसके लिए नियम बनाते हैं। इन नियमो मे से कुछ सार्वजनिक स्वरूप के होते हैं
और कुछ उस-उस सम्प्रदाय की खास रूढ़ियों के स्वरूप के होते हैं, कुछ सार्वकालिक महत्त्व के होते हैं और कुछ का महत्व तात्कालिक होता है।
२.घुद्ध धर्म के ऐसे नियमों को शिक्षापद कहते हैं। उनका विस्तृत विवरण श्री धर्मानन्द कोसम्बी की 'धौद्धसंघ का परिचय पुस्तक में दिया हुआ है।
श्री सहजानन्द स्वामी की शिक्पा-पत्री जैसे प्रत्येक आश्रम और वर्ण के लिए है वैसे ये नियम नहीं हैं। मुख्य रूप से थे भिक्षु
१. सेग्यो अयो गुलो भुत्तो तत्वो अग्गिसिखूपमो। यञ्ज भुले ये दुस्सीको टुपिनु असंयतो। (धम्मपद) २. गुजरात विद्यापीठ से प्रकाशित ।
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