________________
टिप्पणियाँ
६७
जिस दिशा की ओर वह नजर फेंकता है, उसमे से वह धन प्राप्ति की संभावना को ढूँढ़ता है। उसे सारा जगत धनरूप ही भासित होता है। उड़ते पक्षियो के पंखो, जाति-जाति की तितलियों और खुली टेकड़ियो, नहरें निकालने जैसी नदियों, तेल निकालने जैसे कुंओ, जहाँ बहुत लोग आते हैं ऐसे तीर्थस्थानों आदि सबको वह धन-प्राप्ति के साधन के रूप में उत्पन्न हुआ मानता है। चित्त की ऐसी दशा को लोग समाधि कह सकते हैं।
कोई रसायन-शास्त्री जगत में जहां-तहाँ रासायनिक क्रियाओं के ही परिणाम रूप सबको देखता है। वह शरीर मे, वृक्ष में, पत्थर में, आकाश मे, सब जगह रसायन का ही चमत्कार देखता है। ऐसा कह सकते हैं कि उसकी रसायन मे समाधि लग गई है।
कोई सादमी हिंसा से ही जगत के व्यवहार को देखता है। बड़ा जीव छोटे को मारकर ही जीता है, ऐसा वह सब जगह निहारता है। "बलवान को ही जीने का अधिकार है। ऐसा नियम वह दुनिया में देखता है। उसकी हिंसा-भावना में ही समाधि लग गई समझना चाहिए।
फिर कोई आदमी सारे जगत को प्रेम के नियम पर ही रचा हुआ देखता है। द्वेष को वह अपवाद रूप में अथवा विकृत रूप में देखता है। संसार का शाश्वत नियम-संसार को स्थिर, रखनेका नियम-परस्पर प्रेमवृत्ति है, ऐसा ही उसे दीखता है। उसके {चिच की प्रेम-समाधि है।