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ने अपना जीवन आपको समर्पित किया. शिष्या संख्या ४० तक पहुँच गयी। जो अपनी प्रतिभा, व्यक्तित्व आदि से जन मानस को रोशनी दे रही हैं ।
आप श्री का विहार क्षेत्र काफी विस्तृत रहा । आघे भारतवर्ष से भी अधिक भाग का आपने भ्रमण किया । राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, पालीताना, महाराष्ट्र, मद्रास, हैदरावाद आंध्रप्रदेश, दक्षिण प्रान्त, रायपुर, मध्य प्रदेश, दिल्ली, जयपुर और भी अन्य कई स्थानों में आपने अपने कोफिल कंठ से मुग्ध घने लोगों को धर्मशिक्षा देकर सन्मार्ग पर चलना सिसाया, किनने ही पथ भूलों को मार्ग बताया । आत्मोन्मुखी होते हुए आपने पर कल्याण किया । दीपक की भांति जलकर प्रकाश देना ही
जाना ।
५५ वर्ष की लम्बी संयम साधना के साथ आपने जो अमृत घुट्टी लोगों को दो वह जिहा या लेसनी का नहीं, अपितु अनुभव का विषय है । हम सबने देखा कैंसर जैसी महाव्याधि में भी फैसी समाधि थी । कॅमर जिसका नाम श्रवण करने मात्र से व्यक्ति घनरा जाता है, आपने उसका कोई इलाज नहीं करवाया। हर जिहा आपको समता व सहनशीलता की गुगगानं कर रही थी । सत की जरूरत समाज को रहती है, उसका हर गवव पथ घतलाने वाला होता है पर आपको इस नश्वर देह से कोई मोह नहीं था अत इलाज के लिए सदैव मना किया। बढ़ती हुई गांठ की वेदना आपके मन को शान्ति को भंग करने में समर्थ न हुई ।