Book Title: Bruhat Pooja Sangraha
Author(s): Vichakshanashreeji
Publisher: Gyanchand Lunavat

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Page 10
________________ (ज) दीक्षा के पश्चात् आपका नाम साध्वी विचक्षणीजी रखा -गया । अपने गुरुवर्या श्री के अनुशासन में अपनी सरलता नम्रता विनय-शीलता, वाणीमाधुर्य आदि विशिष्ट गुणों से सभी को - प्रभावित किया। इनके गुण सभी को आकर्षित करने लगे। कुशाग्रबुद्धि परिश्रम का योग मणि-कांचन संयोग चना जिससे वर्षों में ग्रहण करने योग्य-योग्यता कुछ समय में ही विकसित हो गई। गुरणीजी के स्वर्गवास पश्चात् उन्नीस वर्ष की अल्पायु में ही स्वतन्त्र विचरण करने का योग वना । उस समय अपने उत्तरदायित्व का बोझ बहुत ही सफलतापूर्वक वहन किया जिसमें न अविवेक एवं न अहं। महाराजश्री के विकसित व्यक्तिस्त्र का प्रभाव सम्पर्क में आने वालों को भाषित करने लगा. प्रवचन शैली, पाणी व्यवहार सभी से साधुता की अभिव्यक्ति होने लगी तब से लेकर आपने जिन शासन की सेवा में जिन वाणी के प्रचार द्वारा अनेक प्रान्तों में विहार कर जिन मंदिरों का निर्माण. जीर्णोद्धार, प्रतिष्ठा, मंडलों की स्थापना, संस्थाओं की स्थापना की, अन्य कई कुरीतियों को आपने उखाड़ा। आपकी वाणी में इतनी शक्ति थी कि बिखरी हुई शक्तियों जुड़ गई विखरे घर संगठित हो गये। आपको कई पदवियाँ समाज ने प्रदान की जैसे व्याख्यान-भारती' विश्व प्रेम प्रचारिका, समन्वय-साधिका आदि के साथ आप प्रवर्तिनी पद से अलंकृत थी। आपके इस अनूठे व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक कन्याओं

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