Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अघस्रजः अङ्कित विराधिस्तस्यै पापनाशाय। (जयो० वृ० २/६१) अभीष्ट कार्यों की बाधाओं का नाशक। अघस्रजः (पुं०) निशापति, चंन्द्र (जयो० १५/५५) अघसम्भवः (पुं०) रोगोत्पत्तिः रोग का जन्म। (जयो० २/५४) अघहरणी (वि०) पापनाशिनी। (सुद० पृ०७३) अघहेतुः (नपुं०) पाप का कारण, दु:ख का हेतु। (समु० १/२) नमामि तं निर्जितमीनकेतुं, नमामि तोहन्तु यतोऽघहेतुः। (समु० १/२) अधर्म (वि०) ठंडा, शीतल, जो गरम न हो। अघाति (स्त्री०) अघातियां कम।। अघातिकर्मिन् (वि०) अघाति कर्म वाला। (वीरो० १२/३८) अघास्पदं (नपुं०) पापस्थान, कष्टमूल। इत्यनेकविधमत्यधास्पद मस्ति। (जयो० २।८९) अनेक प्रकार के बहुत से पाप स्थान हैं। अघावृत (वि०) पतन से घिरा हुआ। अधेन पतनेनाभावेन वा आवृता। (जयो० ३/२३) अघृण (वि०) घृणा रहित। अघृणी (वि०) घृणा शून्य। (जयो० २२/८२) घृणासद्भावाद् अविकलो। (जयो० ३/३२) कुशेशयं वेदिम निशासु मौनं दधानमेकं सुतरामघोनम्। (जयो० ११/५०) मौन रहकर एकाकी तपश्चरण भी निष्पाप है। अघोनिका (स्त्री०) अघादूनाऽघेनिका, पाप की न्यूनता। (जयो० १/८९) अघोर (वि०) सुन्दर, अच्छा, सुहावना। (समु० १/२३) अघोरः (पुं०) शिव, शङ्कर। अघोरा (स्त्री०) सुहावनी। (समु० १/२३) अघोष (वि०) [नास्ति घोषा यस्य यत्र वा] ध्वनिरहित, नि:शब्द, अल्पध्वनि। अङ्क (चु०उभ०) ०अङ्किता, ०कहना, प्रतिपादित करना। (जयो० २/६) * चिह्नित करना, छाप लगाना। अङ्कः (पुं०) [अङ्क+अच्] गोद, ०क्रोड, ०तल। उत्सङ्ग मातृस्थानीयाया अङ्के क्रोडे। (जयो० वृ० ३/२३) लावण्यअङ्कोऽपि मधुरतनु। (जयो०६/५४) लावण्य का घर होकर भी मधुर है। अङ्कं (नपुं०) भूषण, सुन्दर। (जयो० ६/९१) अङ्क (नपुं०) लक्षण, चिह्न, प्राप्त, वृत्ति। अङ्केन लक्षणेन कलिता। (जयो० ५/५२) अङ्कः चिह्नमन्त:करणपरिणामः। (जयो० १/६६) अङ्कः (पुं०) लोक, भाग, स्थान। नादौ सुराते च्युतिशङ्कयेव। (सुद० २/१४) स्वर्गलोक के नीचे गिरने की शङ्का। अङ्कः (पुं०) संख्या विशेष। अङ्कः (पुं०) अपराध, कलंकार। अंकोऽपराधस्तस्य निवरारणम्। (जयो० ९/३९) अनेकता का कलंक दूर करने वाली। 'अङ्कश्चित्र रणेमन्ताविति' विश्वलोचनः। अङ्कः (पुं०) प्रबन्ध। (सुद० १/५) इदं स्विदके द्रुतभ्युदेति। (जयो० १/५) ०काव्य का अंश ०नाटक का एक दृश्य। अङ्ककः (पुं०) गोद, उत्सङ्ग, क्रोड। सकलङ्कः पृषदङ्ककः। (सुद० पृ० ८७) चन्द्रमा कलंक सहित है, शशक को गोद में बैठाए हुए है। (सुद० पृ० ८८) । अङ्कगतः (पुं०) अङ्क में विद्यमान, उत्सङ्ग स्थित। चन्द्रस्याङ्के उत्सङ्गे कलङ्के च गतो वर्तमानः। (जयो० ६/४५) अङ्कनं (नपुं०) [अङ्क ल्युट्] चिह्न, प्रतीक। मुहर, ०लाञ्छन। चिह्न लगाना ०संकेत देना। अङ्कतिः (पुं०) [अञ्च्+अति, कुत्वम्-अञ्चे:को वा अञ्चतिः ___ अङ्कतिर्वा] हवा, अग्नि। अङ्कदलं (नपुं०) अक्षर समूह, (जयो० १/१४) कलङ्कमेत्वङ्कदलं तदर्थ विभावनायाम्। (जयो० १/१४) अपरिस्थितिः (स्त्री०) चन्द्रचिह्न पर स्थित। टङ्ककृत चिह्नस्य परिस्थितिः (जयो० १५/५२) अङ्कभाज (वि०) अङ्क में बैठा हुआ। अङ्कमुखं (नपुं०) कथावस्तु का क्रम। अतिः (पुं०) विधाता, ब्रह्मा। कृतवान् यन्त्रिकमङ्कमतिः (जयो० १०/४४) अङ्गतिर्विधाता। (जयो० वृ० १०/४४) अङ्कविद्य (वि०) अङ्क में बैठा हुआ। अङ्कविद्या (स्त्री०) संख्या विज्ञान, अङ्कगणित। अङ्कय् (सक्) आंकना, देखना, मूल्यांकन करना। (दयो० पृ० ७१) एतत्कृतस्य पुण्यस्याप्यहो केनाडूयतेऽवधिः। (दयो० ७१) अङ्कस्थित (वि०) गोद में बैठा हुआ। नाभि में स्थित (मुनि०२४) एणोऽङ्कस्थितगन्धहेतु-कृतये वाऽज्ञानतो गच्छसि। (मुनि०२४) कस्तूरी-मृग अपनी नाभि में स्थित गन्ध की प्राप्ति के लिए वन में भटकता है। अङ्काशायी (वि०) उत्सङ्गवर्ती। (जयो० १२/७८) अङ्कित (वि०) ०व्याप्त, फैला हुआ, विस्तीर्ण। प्रकल्पित। अङ्कितः प्रकल्पितो गूढो यो मार्गः। (जयो० २/१५४) अङ्कित (वि०) व्याप्त। (जयो० वृ० १/१४) अङ्कित (वि.) उपस्थित। स्वस्थानाङ्कितकाममङ्गलविधौ निर्जल्यतल्पं क्रमेत्। (जयो० २/१२३) For Private and Personal Use Only

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