Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01 Author(s): Udaychandra Jain Publisher: New Bharatiya Book CorporationPage 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नितपस् अग्रतः अग्नितपस् (वि०) अग्नि सा चमकीला। तेज युक्त। अग्निदाहः (पुं०) अग्नितपन। अग्निदीपन् (वि०) क्षुधा वर्द्धक। अग्निवृद्धिः (स्त्री०) पाचन शक्ति। अग्निदेव: (पुं०) अग्निदेवता। (दयो० २८) 8 भूतकालीन ग्यारहवें तीर्थंकर। 8 लोकपाल के भेद रूप अग्नि। 8 अनलकायिक आकाशोत्पन्न देव। 8 अन्याभजातिके लोकान्तिक देव। 8 अग्निज्वाला नामक ग्रह। 8 अग्निकुमार भवनवासी देव। 3 अग्निरुद्धनामा असुरकुमार देव। अग्निपक्व (वि०) अग्नि में पकाया गया। (सुद०) अग्निप्रभदेवः (वि०) ज्योतिर्देव, जिसने देशभूषण और कुलभूषण मुनियों पर उपसर्ग किया था। अग्निपुराण (पुं०) अग्निपुराण, एक वैदिक पुराण। (दयो० ३१) अग्निभूतिः (पुं०) मगधदेश शालिग्राम निवासी सोमदेव ब्राह्मण पुत्र। गौतम का छोटा भाई। (वीरो० १४/२) युतोऽग्निना भूतिरिति प्रसिद्धः श्री गौतमस्यानुज एवमिद्धः। (वीरो० १४/२) अग्निमित्रः (पुं०) एक ब्राह्मण पुत्र। अग्निमुखं (नपुं०) अग्निपंक्ति, अग्निज्वाला। (जयो० १२/७१) ०लौ, तेजस् क्रिया। अग्निमुखी (स्त्री०) रसोई घर। अग्निरक्षणं (नपुं०) पवित्र गार्हपत्य। अग्निरजः (पुं०) इन्द्रगोप, एक सिन्दूरी कीड़ा। अग्निवधू (स्त्री०) स्वाहा। अग्निवर्धक (वि०) पौष्टिक, शक्तिशाली। अग्निवीर्यं (नपुं०) अग्निशक्ति, अग्निबल। अग्निशाला (स्त्री०) यज्ञशाला, अग्निस्थान। अग्निशिखः (पुं०) दीपक, प्रदीप। लौ, ज्वाला। अग्निसंस्कारः (पुं०) अग्निप्रतिष्ठा। अग्निसहः (पुं०) एक ब्राह्मण पुत्र। अग्निसात् (अव्यय) अग्नि की दशा। अग्र (वि०) आगे, प्रथम, सर्वोपरी, मुख्य, प्रमुख, प्रान्त, भाग, पुरस्तात्। (जयो० ११/८९/सम्य० ५८) स्फुटत्कराग्रा मृदुपल्लवा। (जयो० ११४८९) मनोहर नख के अग्रभाग। रात्रं तदन उपकल्पित बह्निभावः। (सुद० ४/२४) रात्रि की शीतबाधा दूर करने के लिए आगे आग जलाता। (सुद० ४/२४) सदभावेन च पुञ्ज दत्वाऽप्यग्रे जिनमुद्रायाः। (सुद० पृ० ७१) अग्रकरः (पुं०) अग्रहस्त। हाथ का प्रथम हिस्सा। अग्रगण्यः (पुं०) श्रेष्ठ, प्रथम, मुख्य, प्रधान। (वीरो० १८/४६) (जयो० ८/१९) अग्रगामित् (वि०) आगे आगे रहना। (जयो० ४/३५) अग्रगामिन् (वि०) अग्रणी, मुखिया, प्रधान। (जयो० ३/८९) अग्रचर्मन् (नपुं०) नूतनचर्म। (जयो० २/५) अग्रज (वि०) अग्रणी, पहले उत्पन्न। (जयो० ५/७६) अग्रजः (पुं०) बड़ा भाई। अग्रजतः (पुं०) पितृजन, बड़े लोग। (जयो० २/१०५) अग्रजा (स्त्री०) बड़ी बहन। अग्रजाया (स्त्री०) बड़े भाई की पत्नी, भौजाई, भ्रातृजाया। वीरो० (१५/४९) अग्रणी: (पुं०) प्रमुख, प्रधान, सैन्यमुख्य, नायक। स पुनः परमानन्दमेदुरो मानवाग्रणी (जयो० ३/९५) मानवानाम ग्रणी यक: (जयो० वृ० ३/९५) अग्रक्षणं (नपुं०) आगामी, भविष्यत् कालीन। अग्रायणी (स्त्री०) एक पूर्व ग्रन्थ का नाम। अग्र अर्थात् द्वादशांगो में प्रधानभूत वस्तु के अयन/ज्ञान को अग्रायण कहते हैं और उसका कथन करना जिसका प्रयोजन हो उसे अग्रायणी कहते हैं। अग्राह्य (वि०) छोड़ने योग्य, त्याज्य। (वीरो० १६/२३) प्राणिजनित वस्तुओं में जो पवित्र होती है, वह ग्राह्य है, अपवित्र नहीं। अतः शाक-पत्र और दूध ग्राह्य है और मांस और गोबर आदि ग्राह्य नहीं है, ऐसा कथन उपादेय नहीं है, क्योंकि गोबर और दूध ये दोनों ही गाय-भैंस आदि से उत्पन्न होते हैं, फिर भी मनुष्य दूध को पीता है, परन्तु गोबर को नहीं खाता। अग्रणीका (वि०) अग्रणी, प्रधान, प्रमुख। उद्दिश्य-तं साम्प्रतम ग्रणीकम्। (वीरो० १४/२०) जिनके पीछे ब्राह्मण समूह था, उन अग्रणी इन्द्रभूति को उद्देश्य करके वीरप्रभु ने कहा। अग्रतः (क्रि० वि०) [अग्रे अग्राद्वा-तसिल्] आगे, प्रमुख। (सुद० १०५) जगदिहतेच्छोद्रुर्तमग्रतस्तौ। (सुद० २/२६) For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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