Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 52
________________ ४१ हैं। हिन्दी में ३३ व्यञ्जन, १६ स्वर और ३ युग्माक्षर --५२ मूलवर्ण माने जाते हैं । उर्दू में ३८, अरबी में ३८, फारसी में २४, अंग्रेजी में २६ और फिनिक भाषा में २० अक्षर हैं । भत हरि ने ६४ वर्णवाले 'अक्षर समाम्नाय' को, जो कि समस्त पद, वाक्यरूप काम व्यवहार का जनयिता है, अनादि निधन भाना है----उसका कोई कर्ता नहीं है। उनका कथन है- “अस्पाक्षरसमाम्नायस्य वाग्व्यवहारजनकस्थ न कश्चित् काजक्ति वमेव वेदे पारस्पण समयमाणम् ।।" ५ कातन्त्र व्याकरण में भी 'मिद्धं वर्ण समाम्नाय:' लिखा है ! इससे वर्ण समाम्नाय की अनादि निधनता सिद्ध होती है । 'तस्वार्थ नार दीपक' की एक पंक्ति 'ध्यायेदनादि सिद्धान्त व्याख्यातां वर्धामातकाम्' में भी उसे अनादि ही कहा है। ज्ञानार्णव (२८-२) और मन्त्रोच्चार समच्चय (अ.) में...-"व्यायेदनादि सिद्धान्त-प्रसिद्ध-वर्णमातृकाम् । नि:शेष शब्दविन्यास-जन्म भूमि जगन्नुतां ।।” लिखा है । गोम्मट्यार में ‘वर्णसमान्नाय' को यदि एक ओर अनादि माना है तो दूसरी ओर यह भी लिया है कि वर्ण आकार ग्रहण करते हैं और आकार में परिवर्तन होता है, इस दृष्टि से उसे सादि भी कहा है। ऐसा जैनधर्म की अनेकान्तवादी प्रवृत्ति के अनुकूल भी है। वर्ण वाक् का मूलाधार है । वर्णों से शब्द बनते हैं और शब्दों से वाश्य ।" मन के भावों को पूर्ण रूप से समझने-समझाने का साधन है वाक्य । अर्थात् वाक्य किसी-न-किसी अर्थ का बोध कराता है । इसी प्रकार जिस एक अथवा अनेक अक्षर समूह से अर्थ बोध होता है, उसे शब्द कहते हैं। अर्थ-बोध होना ही मुख्य है ! अर्थ-बोध के बिना वर्ण, शब्द अथवा वाक्य की कोई गति नहीं। जैसे गौ, यह अक्षरात्मिका वाणी-'सास्नादिमान् पशु-जिसके गले में कम्बल-सा झूल रहा है-का बोध कराती है । गौ शब्द अपने इस अभिप्रेत अर्थ के लिए ही है। यदि अर्थवत्ता शब्द का प्रयोजन न हो तो शब्दाध्ययन निष्फल है। अतः शब्दमात्र जान लेना पर्याप्त नहीं, अर्थज्ञान कल्याणकारक है। जिस शब्द का अर्थज्ञान नहीं होता, वह आल्हादक नहीं लगता। उपनिषदों में कहा गया है“योऽर्थज्ञः स इत सकलं भद्रमश्नते, नाकमेति ज्ञान विधूतपाप्मा।" इसका अर्थ है कि जो शब्द के अर्थ को जानता है, वह यहाँ सम्पूर्ण कल्याण को प्राप्त करता है और ज्ञान द्वारा पापों का क्षय कर स्वर्ग में जाता है। वेदों के विषय में गीता और १. देखिए भर्तृहरि का वाक्यपदीयम्. २. तत्त्वार्थसारदीपक-३५. ३. भावश्रुत अनादि है और द्रव्यश्रुत सादि है । बृहत् जैन शब्दार्णव, पृ. ३१. ४. “वर्णाः पदानां कर्त्तारो वाक्यानां तु पदावलिः” तत्त्वार्थसार, वाराणसी--५, २३ वा श्लोक, पृ. २१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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