Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 87
________________ ७६ देखते हैं। वह ऐसी ही साधिका थी। उसने चारों भावनाओं को निश्चल मन से भाया था। पं० आशाधर ने 'अनगारधर्मामृत' में लिखा है, "अनन्त चतुष्टय परमपद की प्राप्ति के लिए अभिमुख मुनियों को मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ चारों भावनाओं को निरन्तर चिन्तन करना चाहिए। प्राणिमात्र में दुखों को उत्पन्न न होने की आकांक्षा मैत्री, गुणवानों में हर्षरूप मनोराग प्रमोद, दुखियों में उदारबुद्धि कारुण्य और अनुकूल-प्रतिकूल व्यक्तियों में समता-माध्यस्थ भावना है । हे ब्राह्मि! वचनों की तथा आत्मा की देवि ! मुझे आप ऐसी शिक्षा दें कि मैं इन भावनाओं में तत्पर रहूँ।"१ किसी समय ऊपरी रावी घाटी अथवा बुड्ढल नदी घाटी का क्षेत्र ब्राह्मी का प्रभाव क्षेत्र माना जाता था, ऐसा उसके पुरातात्त्विक अवशेषों से अनुमानित होता है। आधुनिक चम्बा जिले के भरमौर स्थान से एक मील पर्वतीय ऊँचाई की ओर बढ़ने पर एक देवी मन्दिर मिलता है। वह काष्ठनिर्मित है। उसमें सिंहारूढ देवी की एक पीतल की प्रतिमा है। प्रतिमा के पीछे एक व्यक्ति खड़ा है, जो देवी को पकड़े हुए है । यहाँ के निवासी इस मूत्ति और मन्दिर को ब्रह्माणी देवी का कहते हैं । उनका कथन है कि आदिकाल में इस क्षेत्र पर ब्रह्माणी देवी का अद्वितीय प्रभाव था। उसी के नाम पर इसे ब्रह्मपुरी कहते थे। यह भूमि उसी देवी की मानी जाती थी। __इस स्थान से एक मील नीचे चौरासिया का मैदान है, जिसमें चौरासी लिंग स्थापित हैं । वहाँ गणेश, शीतला और लक्षणा देवियों के मन्दिरों के अतिरिक्त एक विशाल शिव मन्दिर तथा अष्टधातु का नादिया बैल भी है। आधुनिक समय में निर्मित एक नागाबाबा-मन्दिर भी है, जिसमें अस्सी सहस्र रुपये व्यय हुए हैं। इस मंदिर की निर्माण-शैली राजपूत है। यहाँ के लोगों का कथन है कि आदिकाल में यहाँ 'ब्रह्माणी देवी' का विशाल मंदिर था। सब उसी के भक्त थे। यदि इस स्थान की खुदाई कराई जाये तो उस मन्दिर के अवशेष मिल सकते हैं। यह कथन इस बात से और भी पुष्ट हो जाता है कि गणेशमन्दिर की वेदी पर जो पुष्पमय चित्रकारी है, वह निःसन्देह जैन है, ऐसा कनिंघम ने बहुत पहले ही लिख दिया था। यह सच है कि यह क्षेत्र किसी समय श्रमण संस्कृति का प्रमुख स्थान था। सिकन्दर महान् ने अपने आक्रमण के समय' (३२६ ई. पू.) यहाँ अनेक जैन १. पं० आशाधर, अनगारधर्मामृत, ४/१५१. २. "भरमौर के गणेश मंदिर की वेदी पर जो पुष्पमय चित्रकारी है (फोटो नं० ३०), वह निःसंदेह जैन या बौद्ध है, जैन चित्रकारी से अधिक मिलती-जुलती है।" Cunningham, A. S. R. xiv, P. 112, मिलाइए Vogel A. S. R, 1902-3, P.239, Fig. 5, Antiquities, P. 140, 142, F. Plates viii. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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