Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 127
________________ ११६ प्रवृति केवल आर्मेइक लिपि में थी और खरोष्ठी को यह प्रवृत्ति उससे ही, ईसा से पांच शती पूर्व प्राप्त हुई । इस कथन पर डा. राजबली पाण्डेय की प्रतिक्रिया दृष्टव्य है "The direction of the Kharosthi from the right to the left is no guarantee that it was derived from the Semetic source as leftward movement of writing can not be regarded an absolute monopoly of the semetic people. In a vast country like India the Evolution of two types of writing, one runing from the left to the right and the other from the right to the left was not impossible." दोनों प्रकार की लिखने की प्रणालियों का इतने बड़े भारत देश में प्रचलित होना असम्भव नहीं है, ऐसा उनका कहना है और यह कथन केवल सम्भावनागर्भित है । पाण्डेयजी कोई प्रमाण नहीं दे सके थे, किन्तु जैन ग्रन्थों में प्रमाण भी सहज उपलब्ध हो जाते हैं । यह सच है कि दायें से बायें लिखने के ढंग पर आर्मेइक लिपि का एकाधिकार नहीं था । आर्मेइक से बहुत पूर्व सम्राट ऋषभदेव ने जहाँ बायें से दायें लिखना सिखाया, वहाँ दायें से बायें लिखना भी सिखाया । इसके अतिरिक्त, ब्राह्मी के समान ही खरोष्ठी भी अक्षरात्मक लिपि है । इसमें व्यञ्जन के साथ-साथ स्वर भी वृत्त अथवा पड़ी रेखा के रूप में आते हैं। आर्मेइक में घ, ध और भ वर्णों का अभाव है, किन्तु खरोष्ठी में इसके चिन्ह वर्तमान हैं । बूलर ने खरोष्ठी के लिपिचिन्हों की आर्मेइक से उत्पन्न हो ने की जो कल्पना की है, वास्तव में उसे एक कष्ट कल्पना ही कहना चाहिये | 3 विश्व की लिपियों के वर्ण, रेखाओं, अर्धवृत्तों और वृत्तों आदि से ही बनते हैं । इनमें आवश्यक परिवर्तन करके किसी भी लिपि को अन्य लिपि से उद्भूत कहा जा सकता है ।" २ ૪ एक बात अवश्य है कि ब्राह्मी में दीर्घस्वर मौजूद थे, खरोष्ठी में नहीं थे । विद्वानों का कथन है कि खरोष्ठी में दीर्घस्वरों का अभाव प्राकृत प्रयोग के कारण था । प्राकृत लोकप्रिय भाषा थी । उसमें दीर्घ स्वर नहीं थे । प्राकृत के लिखने में ही खरोष्ठी का प्रयोग होता था, अतः उसमें दीर्घस्वरों का न होना स्वाभाविक ही है । डा. राजबली पाण्डेय का यह कथन -- "The absence of long vowels in the kharosthi is due to avoid long vowels, big compounds and big ligatures-thus the 1. "Indian Palaeography, Dr. R.B. Pandey, P. 55-56. २. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ ३६-४१. 3. "The close study of the comparative table will reveal that resemblance between the Kharosthi and the Armaic is very superflous and it does not warrant the derivation of the former from the latter". ---Indian Palaeography, Dr. R. B. Pandey, P. 55. ४. हिन्दी भाषाः उद्गम और विकास, पृष्ठ ५६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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