Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 140
________________ १२९ भारतीय लिपिमाला-स्वर और व्यञ्जन "तेत्तीस वेंजणाहं, सत्तावीसा सरा तहा भणिया । चत्तारिय जोगवहा, चउसट्ठी मूलवण्णाओ ॥" -आचार्य नेमिचन्द्र, गोम्मटसार, १/३५२ तेंतीस व्यञ्जन, सत्ताईस स्वर और चार योगवाह चौंसठ मूल वर्ण हैं। २७ स्वर ह्रस्व स्वर जिनके उच्चारण में एक मात्रा-काल लगता है । अ इ उ ऋ ल ए ऐ ओ औ ।। दीर्घ स्वर जिनके उच्चारण में दो मात्रा-काल लगता है । आ ई ऊ ऋ ल ए ऐ ओ औ । प्लुत स्वर जिनके उच्चारण में तीन मात्रा-काल लगता है । आ ई ऊ ऋ ल ऐ ऐ ओ औ । ३३ व्यंजनाक्षर २५ पंचवर्गाक्षर ग् घ, ज. झ् __ ख् छ ङ ञ । । Foot bps too थ् न् । ८. परं वर्णाष्टकम् र ल व् य ! प्राकृत भाषा की ब्राह्मी वर्णमाला में ३३ व्यञ्जन, २७ स्वर और ४ योगवाह मिलाकर ६४ मूल वर्ण होते हैं। संस्कृत भाषा की अक्षरमाला में ६३ मूलवर्ण होते हैं। उसमें 'ल' का प्रयोग नहीं होता, अवशिष्ट ३३ व्यंजन, २६ स्वर और ४ योगवाह होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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