Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 148
________________ सम्राट खारवेल (१७० वर्ष ई.पू.) के शिलालेख को ब्राह्मी लिपि खारवेल कलिंगदेश (उड़ीसा) के राजा थे। वे चौबीस वर्ष की वय में राज्यसिंहासन पर अधिष्ठित हए और उनका यश चतुर्दिक में विकीर्ण हो उठा । वे दुखियों के आधार-स्तम्भ, अहिंसा के प्रतीक और जिनेन्द्र के परम भक्त थे। उन्होंने मगध के राजा नन्द को पराजित किया और अपने कुलदेवता कलिंगजिन की खड्गासन मूर्ति को उत्साह और उत्सव के साथ वापस कलिंग लाये । कभी कलिंगों के कुलदेवता जिन का अपहरण नन्द ने किया था। उदयगिरि-खण्डगिरि नाम के दो पर्वतों में १९ गफाएँ हैं। उनमें एक हाथीगफा कहलाती है। इसका कोई निर्दिष्ट आकार नहीं है । गठन अतिसाधारण है । इसमें हाथी के चार प्रकोष्ठ और एक बरामदा है। गुफा का अन्तर्देश ५२ फीट लम्बा और २८ फीट चौड़ा है । द्वार की ऊंचाई ११] फीट है । इस गुफा में खारवेल का विश्वविख्यात शिलालेख उत्कीर्ण है । ब्राह्मी लिपि में निबद्ध । बहुत समय तक इसे कोई पढ़ न सका। डा. काशीप्रसाद जायसवाल को इसके पढ़ने में सोलह वर्ष लगे। उदाहरण स्वरूप इसकी दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-- ___ नमो अरहंतानं (1) नमो सवसिधानं (।) ऐरेन महाराजेन महमेघवाहनेन चेत राजवसवधनेन पसथ सुलभलखनेन चतुरंतल थुन-गुनो पहितेन कलंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन. पंदर वसानि सिरि-कडार-सररिवता कीडता कुमारकीडिका (1) ततो लेख रूपगणना-ववहार-विधि-विसारदेन सबविजावदातेन नव वसानि योवराजपसासितं (1) संपुण-चतुवीसति-वस्ते त दानि वधमान सेसयोवे (=व) नाभिविजयो तति ये. अर्थ---अरहंतों को नमस्कार (1) सब सिद्धों को नमस्कार (।) ऐल महाराज मेघवाहन (') चेतराज वंश की प्रतिष्ठा के प्रसारक प्रशस्त शुभ लक्षणयुक्त चारों दिशाओं (विश्व) के आधार स्तम्भ के गुणों से विभूषित कलिंग देश के राजा श्री खारवेल के द्वारा. (अपने) कांत प्रतापी गौरवर्ण किशोर शरीर द्वारा पन्द्रह वर्ष-पर्यन्त कुमार क्रीड़ाएँ करता है (1) इसके उपरान्त लेख मुद्रा राजगणित धर्म (शासन नियम) तथा शासन संचालन में पारंगत समस्त कलाओं में प्रवीण (उसने) नौ वर्ष तक युवराज पद से शासन करता है। चौबीसवाँ वर्ष समाप्त होने पर पूरे यौवन-भर उत्तरोत्तर विशाल विजेता (उसका) कलिंग के तृतीय राजवंश में पूरे जीवन के लिए महाराज्याभिषेक होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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