Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ ११२ लिपि से निकली होने के कारण भारत की तथा एशिया की अन्य सभी लिपियों में कुछ समानता है ?"१ डॉ. बूलर ने तेलगु-कन्नड़ का विकास तीन क्रमों में स्वीकार किया है। पहला क्रम वह है, जो कदम्ब अभिलेखों और दानपत्रों में प्राप्त होता है। इनका समय ईसवी पाँचवीं-छठी शती है। दूसरा विकास-क्रम चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के अभिलेखों में मिलता है । इनका समय सन् ६५० से ९५० तक है । विकास के तीसरे चरण को फ्लीट पुरानी कन्नड़ कहता है। इस लिपि के नमूने पूरब में ११ वीं शती के वेंगी के अभिलेखों में और पश्चिम में सन् ९७८ के गंग अभिलेख में उपलब्ध होते हैं। पुरानी कन्नड़ आधुनिक कन्नड़ से अधिक भिन्न नहीं है। उसकी सब-से-बड़ी विशेषता है कि उसमें सभी मात्रिकाओं के ऊपर कोंण बनते हैं। इन मात्रिकाओं में ऊपर स्वर चिह्न नहीं लगते । ये कोण आधुनिक कन्नड़ से मिलते-जुलते हैं। २ तैलग-कन्नड़ का प्रयोग बम्बई के दक्षिण भाग में, आन्ध्र प्रदेश तथा मैसूर में मिलता है। नौवीं सदी के कन्नड़ ग्रन्थ-कविराजमार्ग में इसके दर्शन भलीभाँति होते हैं। दक्षिण में प्रचलित एक लिपि का नाम था, 'ग्रन्थ लिपि' । यह पूर्वी मद्रास के किनारे से प्राप्त एक प्राचीन संस्कृत अभिलेख में मिली है। यह लिपि कांची में पांचवीं से नौवीं सदी तक तथा चोल (उत्तरी मद्रास राज्य) में नौवीं से चौदहवीं सदी तक प्रयुक्त होती रही। पल्लव राज्यवंश के ताम्रपत्र (सातवीं सदी) ग्रन्थ लिपि में ही लिखे गये थे। इसका नाम 'ग्रन्थ लिपि' इसलिए पड़ा कि आरकट से केरल तक सभी ग्रन्थ इसी लिपि में लिखे गये। डॉ. बूलर का कथन है कि तमिल जिलों की संस्कृत लिपियों को सामान्यतया 'ग्रन्थ लिपि' कहते हैं । इस लिपि के सबसे पुराने रूप पलक्कड़ और दशनुयव के पल्लव राजाओं के ताम्र पट्टों पर मिलते हैं। इसका आखिरी उदाहरण-बादामी का अभिलेख है। यह अभिलेख पल्लव नरसिंह प्रथम ने ६२६ से ६५० के बीच कभी खुदवाया था । 'ग्रंथ लिपि' के अक्षर पुरानी तेलगु-कन्नड़ से मिलते हैं। इस लिपि के शा या शी की ओर हुल्श ने ध्यान आकर्षित किया है, जो दसवीं-न्यारहवीं शती के नागरी रूपों के समान हैं। तमिल के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह पाँचवीं सदी की ब्राह्मी से उत्पन्न हुई और ग्रन्थ लिपि से प्रभावित हुई। मद्रास के भूभाग में और माला१. कन्नड़ साहित्य का इतिहास, पृष्ठ ६. २. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ १३५-१४०. ३. प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृष्ठ २५४. ४. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ १४४-४५. ५. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ, १५३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156