Book Title: Bharatiya Achar Darshan Part 02
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 14
________________ - 12 - प्रस्तुत गवेषणा में जिन महापुरुषों, विचारकों, लेखकों, गुरुजनों एवं मित्रों का सहयोग रहा है, उन सबके प्रति आभार प्रदर्शित करना मैं अपना पुनीत कर्तव्य समझता हूँ। सर्वप्रथम मैं उन महापुरुषों के प्रति विनयवत् हूँ, जिन्होंने मानव-जीवन की मूलभूत समस्याओं को गहराई से परखा और उनके निराकरण के लिए मानव कोमार्ग-दर्शन प्रदान किया। कृष्ण, बुद्ध और महावीर एवं अनेकानेक ऋषि-महर्षियों के उपदेशों की यह पवित्र धरोहर, जिसे उन्होंने अपनी प्रज्ञा एवं साधना के द्वारा प्राप्त कर मानव-कल्याण के लिए जन-जन में प्रसारित किया था, आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक है और हम उनके प्रति श्रद्धावन हैं। लेकिन, महापुरुषों के ये उपदेश आज देववाणी संस्कृत, पालि एवं प्राकृत में जिस रूप में हमें संकलित मिलते हैं, हम इनके संकलनकर्ताओं के प्रति आभारी हैं, जिनके परिश्रम के फलस्वरूप वह पवित्र थाती सुरक्षित रहकर आज हमें उपलब्ध हो सकी है। सम्प्रति युग के उन प्रबुद्ध विचारकों के प्रतिभीआभार प्रकट करना आवश्यक है, जिन्होंने बुद्ध, महावीर और कृष्ण के मन्तव्यों को युगीन सन्दर्भ में विस्तारपूर्वक विवेचित एवं विश्लेषित किया है। इस रूप में जैन-दर्शन के मर्मज्ञ पं. सुखलालजी उपाध्याय, अमरमुनिजी, मुनि नथमलजी, प्रो. दलसुखभाई मालवणिया, बौद्ध-दर्शन के अधिकारी विद्वान् धर्मानन्द कौसम्बी एवं अन्य अनेक विद्वानों एवं लेखकों का भी मैं आभारी हूँ, जिनके साहित्य ने मेरे चिन्तन को दिशा-निर्देश दिया है। मैं जैन-दर्शन पर शोध करने वाले डॉ. टाटिया, डॉ. पद्म राजे, डॉ. मोहनलाल मेहता, डॉ. कलघटगी, डॉ. कमलचन्द सोगानी एवं डॉ. दयानन्द भार्गव आदि उन सभी विद्वानों का भीआभारी हूँ, जिनके शोध-ग्रन्थों ने मुझे न केवल विषय और शैली के समझने में मार्गदर्शन दिया, वरन जैन-ग्रन्थों के अनेकमहत्वपूर्णसन्दर्भो को बिना प्रयास के मेरे लिए उपलब्ध भी कराया है। इसी प्रकार, मैं अभिधानराजेन्द्रकोश जैसे कोश-निर्माताओं और सूक्ति त्रिवेणी एवं महावीर वाणी जैसे कुछ प्रामाणिक सूक्ति-संग्राहकों के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ, जिनके कारण अनेक सन्दर्भ अल्प प्रयास में ही उपलब्ध हो सके हैं। इन सबके अतिरिक्त, मैं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के उन लेखकों के प्रति भी आभारी हूँ, जिनके विचारों से प्रस्तुत गवेषणा में लाभान्वित हुआ हूँ। उन गुरुजनों के प्रति, जिनके व्यक्तिगत स्नेह, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन ने मुझे इस कार्य में सहयोग दिया है, श्रद्धा प्रकट करना भी मेरा अनिवार्य कर्त्तव्य है। सर्वप्रथम, मैं सौहार्द्र, सौजन्य एवं संयम की मूर्ति श्रद्धेय गुरुवर्य डॉ. सी.पी. ब्रह्मों का अत्यन्त ही अभारी हूँ, जिन्होंनेनिर्देशक के नाम से विलग रहकर भी इस शोध के निर्देशन का सम्पूर्ण भार अपनी वृद्धावस्था में भी वहन किया है। अपने स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं करते हुए भी उन्होंने प्रस्तुत गवेषणा के अनेक अंशों को ध्यानपूर्वक पढ़ा यासुना एवं यथावसर उसमें सुधार एवं संशोधन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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