Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay
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छठा अधिवेशन छठा अधिवेशन दिगम्बर महासभा अधिवेशन के साथ-साथ अम्बाला सदर में हुआ। ऐसा महत्वपूर्ण और शानदार जल्सा पिछले कई वर्षों में नहीं हुआ था। कितनी ही भजन मंडली आई थी। उनमें सर्वोचम पार्टी हिसार के बाबू नियामतसिंह की थी। दर्शकों का समूह दिन दिन बढ़ते-बढ़ते २००० हो गया था। २६ दिसम्बर १९०४ से ऐसोसियेशन का काम प्रारम्भ हुश्रा । सभा का कार्य चलाने की सेवा मेरे सुपुर्द की गई । मैंने मौखिक भाषण में यह दिखलाने का प्रयत्न किया, कि ऐसोसियेशन और महासभा के उद्देश्य में विशेष अन्तर नहीं है । किन्तु ऐसोसियेशन का कार्य-क्षेत्र व्यापक है, महासभा का संकुचित । महासभा साम्प्रदायिक गिने चुने लोगों की मंडली है। ऐसोसियेशन का द्वार जैनमात्र के लिये खुला है । उसका अभीष्ट है कि जैन धर्म का प्रचार भारतवर्ष भर में, बल्कि समस्त संसार में किया पावे । समय की आवश्यकता है कि संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी विद्या का भी अभ्यास किया जाय। केवल संस्कृतज्ञ पंडितों में पामिक उदारता, सहिष्णुता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती, और न यह योग्यता होती है कि बैन सिद्धान्त का मर्म स्पष्ट शन्दों में जनता को समझा सकें। प्रोफेसर बियाराम गवर्नमेंट कालिज लाहौर ने प्रभावशाली व्याख्यान में साम्प्रदायिकता की गौणता दर्शाते हुए कहा कि श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी आदि जैनमात्र को वीर भगवान कथित सिद्धान्तों का दिगन्त प्रचार करना चाहिये, और अजैनों के प्रहारों से जिन धर्म की रक्षा करनी चाहिये, जो प्रायें दिन समाचार पत्रों, ऐतिहासिक पुस्तकों, साहित्यिक लेखों द्वारा होते रहते हैं। ऐसे आपातों का मुख्य कारण प्रशानोत्पन्न देष और पक्षपात है। इस प्रस्ताव का समर्थन अम्बाला निवासी श्रीयुत गोपीचंदजी प्रतिनिधि स्वेताम्बरीय सम्प्रदाय ने किया। इस सम्बन्ध में विविध व्याख्यानों से ऊपापोह किया बाकर पुस्तकाकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com