Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay
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( २१ ) अभ्यागतों के सत्कार सुभशा में संलग्न थे और श्री मनीलाल हाकिमचन्द उदानी बलसों के प्रोग्राम बनाते थे। हीराबाग की विशाल धर्मशाला में बाहर से आये हुए प्रतिनिधि आराम से ठहरे हुए थे। अधिवेशन की कार्यवाही एम्पायर थियेटर में प्रारम्भ हुई । मंगरौल जैन सभा की बालिकाओं ने मिलकर एक स्वर से मंगलाचरण किया। मैंने भी कुछ मंगलात्मक श्लोक पढ़े । सोलिसिटर मोतीचन्द जी कापडिया के प्रस्ताव, सेठ ताराचन्द नवलचन्द जवेरी के समर्थन पूर्वक प्रोफेसर खुशालभाई शाह सभापति निर्वाचित हुये । सभापति का मुद्रित व्याख्यान वितरण कर दिया गया था; किन्तु श्रीयुत शाह ने अपना व्याख्यान बिना पढ़े मौखिक रूप से ही कहा । श्रीयुत शाह ने छपा हुआ नहीं पढ़ा बल्कि इटैलियन संस्कृत का अच्छा अभ्यास प्राप्त किया था। ये अब सिडेनहम कॉलेज बाम्बे में अर्थ तथा व्यापारशास्त्र के प्राचार्य हैं। उन्होंने बृहत् ऐतिहासिक ग्रन्थ भारतवर्ष का अतीत गौरव ( The Glory that was Ind ) सम्पादन किया है। व्याख्यान की ध्वनि गहरी स्पष्ट गू बती हुई थी। और खचाखच भरे हुए थियेटर हाल के दूरस्थ कोने तक पहुँचती थी । इनका व्याख्यान दो घन्टे तक चलता रहा । उपस्थित समूह ने उसे जो लगाकर ध्यान से सुना । बीच बीच में करतलध्वनि अवश्य होती थी। सभापति महोदय के ये वाक्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी ये "इस समय में जब कि प्रत्येक व्यक्ति इस बात को भूल कर कि वह हिन्दू मुसलमान या पारसी है सिर्फ यह ध्यान रखता है कि वह मारतीय है, हम लोग यह भूल गये कि हम जैन है, मगर यह समझते रहते हैं कि हम दिगम्बर है, श्वेताम्बर है, स्थानकवासी है, डेरावासी हैं।" उन्होंने जोरदार प्रभावक वाक्यों में दिखलाया कि जैन धनवान है, प्रचुर द्रव्य का दान निरन्तर कहते रहते हैं किन्तु, उस दान को सुव्यवस्था और सदुपयोग होने में कुछ मी प्रयत्न नहीं करते । उन्होंने प्राथमिक और उच लौकिक, धार्मिक, व्यापारिक शिक्षा प्रचार के लिये बहुत कुछ कहा । इस बोशोले, गौरव-शालो प्रवचन को भी ३२ बरस गुजर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com