Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay
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( २३ ) था। प्रान्तीय धारा सभा के सदस्य, जुडीशल कमिश्नर पंडित कन्हैयालाल, प्रमुख न्यायाधीश, वकील, बैरिस्टर, सेठ, साहूकार, डाक्टर, इन्बीनियर, सभी प्रतिष्ठित लोग पधारे थे। सड़क और रास्ता बन्द हो गया था। मकानों की छत और दरख्तों पर लोग चढ़कर इस दृश्य को देख रहे थे। उपस्थित जनता महात्मा गांजी का प्रवचन सुनने के लिये एकत्रित थी । महारमा बी ने अहिंसा के व्यापक महत्व पर जोर के साथ उपदेश दिया और जैनियों को आदेश दिया कि वह अपने अहिंसा धर्म को पशु पक्षियों को दया प्रदर्शन तक ही सीमित न रक्खें, बल्कि अपने परिबन, मित्र, पड़ौसी, या किसी व्यक्ति को किसी प्रकार शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, कष्ट या खेद न पहुँचावें । अहिंसा वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय जीवन को बल पहुँचानेवाला वीरों का धर्म है। अहिंसावादी के पास कभी कायरता नहीं फटक सकती । बैरिस्टर विभाकर और सभापति हौरनिमन ने अपने भाषणों में कहा कि यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि निरामिष आहार, दया प्रचार और अहिंसा व्यवहार का उपदेश भारतीय जनता को पाश्चात्य शिक्षा प्रास यूरोपियन द्वारा दिया जाये, बो लोग मांसाहारी होने के कारण अछूत और भ्रष्ट समझे जाते थे । सभा विसर्जित होने के बाद महात्मागांधी जी ने अजिताश्रम में पधार कर महिला मण्डल को उपदेश दिया। ___ मनोनीत सभापति श्रीयुत मानिकचन्दजी २५ ता. की रात को पधारे । २६ की रात को अजिताश्रम मण्डप में कुंवर दिग्विजय सिंह का पब्लिक व्याख्यान जैन धर्म पर हुश्रा । २७ की कार्यवाही सिद्धभक्ति, प्रार्थना, शान्तिपाठ,मंगल पढ़कर की गई । रायसाहब फूलचन्द एकजेकेटिक इन्चीनियर लाहौर ने उपस्थित बनों का स्वागत किया । मानिकचन्दजी का छपा हुआ हिन्दीभाषण वितरण हुआ। छोटे टाईप में ४० पृष्ठ पर छपा हुमा व्याख्यान जैन समाज का दिग्दर्शन है, समाज की अवनत दशा का चित्रस, उसके कारण, और समाजोन्नति के उपायों का विषद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com