Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay

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Page 57
________________ बोवन सुधार करें; बिससे उन्हें कभी विधर्मी होने का अवसर प्राप्त न हो। बाईसवाँ अधिवेशन बाईसवाँ अधिवेशन ७ मई १९३८ को वरुड तहसील मोरसी (अमरावती में ) भैय्यालालबो मांडवगडे के सभापतित्व में हुआ, पास-पास के स्थानों के करीब ३०० जैन आ गये थे । अजैनों की सख्या भी इतनी ही थी । कारंजा श्राविकाश्रम की व्यवती बाईजी ने प्रभावशाली व्याख्यान दिया । तेईसवाँ अधिवेशन तेईसवाँ अधिवेशन यवतमाल टाउन हाल में साल १६४० में भी ऋषभसावनी काले के सभापतित्व में हुा । सेठ ताराचन्द सुराना प्रेसीडेन्ट म्युनिसिपल कमेटी स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। इस अधिवेशन में महामण्डल ने अपने प्रस्तावों में निम्न घोषणा की १. प्रत्येक व्यक्ति शुद्ध शरीर, शुद्ध वस्त्र, शुद्ध द्रव्य से, विनयपूर्वक, विधानानुसार, जैन मन्दिर में प्रक्षाल पूना का अधिकारी है । उसके इस धार्मिक अधिकार में विघ्न बाधा लाने से दर्शनावरणीय, शनावरणीय मोहनीय अन्तराय कर्म का बन्धन होता है । २. वर्तमान परिस्थिति में वहाँ जैन मन्दिर मौजूद है, वहाँ नयी मन्दिर, या नई वेदी बनवाना बिल्कुल अनावश्यक है । ३. पाति सुधार के लिये निम्न प्रयत्न महामण्डल करेगा । (१) साम्प्रदायिक विचार गौण करके शाखा मंडलों की स्थापना । (२) समस्त जैन समाज में बेरोकटोक रोटी-बेटी व्यवहार । (३) जैन धर्म, जैन साहित्य, प्राचीन शास्त्र और सामान्य शिक्षा प्रचागर्थदेव द्रव्य का जो मंदिरों में जमा है सदुपयोग हो । (8) जैन तीर्थ क्षेत्र-सम्बन्धी झगड़ों का पारस्परिक समझौता । .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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