Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay
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तत्पाश्चात भगवान की सवारी पालकी में, उपदेशीय भजन मंडली सहित बाजारों में निकली। पालकी के पीछे महिला-मडली भी भजन कहती हुई चलतो यो। शाम को मंडल के अध्यक्ष प्रोफेसर हीरालाल तथा मानिकलालजी कोचर वकील नरसिंहपुर अध्यक्ष, स्वागत समिति की सवारी नव निर्मित, सुसज्जित छतरोदार रथ में निकली, जिसको एक बैल आगे और बारह बोड़ी बैल पीछे, कुल पच्चीस बैल मिलकर खींच रहे थे। सारथी का माननीय पद श्रीयुत सेठ लालजी भाई ने ग्रहण किया था। रथ के साथ-साथ जैन तथा अबैन बनता हजारों की संख्या में और जैन महिला मंडली रथ के पीछे थी। बाजारों, दूकानों और मकानों पर दर्शकों की भीड़ थी । साथ-साथ बैंड बाजा, भजन तथा जयकार शन्द तो होते ही थे।
गल्लामंडी के विशाल मैदान में सभा मंडप बनाया गया था। मडी के सब तरफ मकानों पर दीपावली जगमगाहट कर रही थी। शब्द प्रसारक यंत्र Microphone) भी लगाया गया था।
मङ्गलाचरणपूर्वक बारह कन्याओं ने मिलकर स्वागत गान गाया था ? स्वागताध्यक्ष के भाषण हो जाने पर, हीरालालजी ने डेढ घंटे तक धारा प्रवाह मौलिक प्रवचन किया ! अहिंसा, स्यादवाद, कर्म सिद्धान्त, अपरिग्रह, वात्सल्य, विश्वप्रेम, सामाजिक एकता आदि विषयों पर सरल शब्दों में, स्पष्ट स्वर से, हृदयग्राही, असाधारण ऐसा मौखिक व्याख्यान किया कि बाल-वृद्ध, स्त्री पुरुष सच ही जी लगा कर सुनते रहे। रात को करीब ग्यारह बजे श्रीयुत अजितप्रसाद द्वारा भगवान महावीर जीवन और कुछ सामाजिक विषयों पर भाषण होकर सभा समाप्त हुई।
दूसरे दिन ५६ ता० को राय साहेब सेठ श्रीकृष्णदासजी के दीवानखाने पर विषय-निर्धारिणी समिति की बैठक करीब १२ बजे. तक हुई।
रात्रि को मण्डल का खुला अधिवेशन हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com