Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay

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Page 42
________________ ( २५ ) का बबाब देना होगा की भारत में जैन धर्म ने जैन समाज का क्या उपकार किया है।...यदि हम औरों को जैनी बनाना चाहते हैं तो क्या यह आवश्यक नहीं है कि हम उन्हें भी अपने ही समान धार्मिक तथा सामाजिक अधिकार प्रदान करें...हमें संसार की प्रायः खासखास भाषाओं में हमारे शास्त्र तथा जैन सिद्धान्त की पुस्तकें प्रकाशित करनी होंगी...पारा के जैन सिदान्त भवन को हमें एक वास्तविक सेंट्रल जैन लाइब्रेरी या म्युजियम बनाना होगा...हमें कौसिलों में प्रवेश, जैन त्यौहारों पर श्राम छुट्टी कराने का प्रयत्न, उपदेशकों द्वारा समाज सुधार के विचारों का प्रचार, युवकों को अन्य देशों में मेजकर उच्च श्रौद्योगिक तथा साधारण व व्यवसाय शिक्षा दिलाने की योजना, मन्दिरों के कोष में एकत्रित धनराशि का धामिक तथा समाजोदारक शिक्षा तथा कलाकौशल प्रचारार्थ सदुपयोग, सार्वजनिक संस्थाओं का सुप्रबन्ध, हिन्दी साहित्य का प्रचार करना चाहिये।" अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध की उपयोगिता दृढ़ युक्तियों से दिखाई गई थी । शिक्षा तथा शिक्षा पद्धति पर गहरा विवेचन किया गया था। सभापति के व्याख्यान समाप्ति पर सारी उपस्थित सभा (सम्जेक्ट कमेटी) विषय निर्धारिणी समिति मान ली गई । २६, २७, २८, २९ की शाम को पबलिक व्याख्यान श्री दिगविजयसिंहषी, प्रभुलालजी, भगवानदीनजी के होते थे और प्रात: धार्मिक सम्मेलन। ३० को महामंडल का खुला अधिवेशन हुआ। ३१ को धार्मिक चर्चा २४ से ३१ तक अबिताश्रम में दोनों समय भोजन का प्रबन्ध किया जाता था। इस अधिवेशन का सारा खर्च उठाने का पुण्य मुझे प्रात हुश्रा था। जे. एल. जैनी अस्वस्थता के कारण पधार न सके थे; किन्तु इन्दौर से उन्होंने एक विस्तीर्ण संदेश मेवा था, बो बैन गजट १९१० के १२ पृष्ठों पर प्रकाशित किया गया है। सभापति महोदय के व्याख्यान का अनुवाद ४० पृष्ठों में छपा हुआ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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