Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka Sankshipta Itihas 1899 to 1946
Author(s): Ajitprasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal Karyalay

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Page 13
________________ हुा । कलकत्ता निवासी पं० बलदेवदासजी ने मंगलाचरण किया। इस अधिवेशन में पारा से सच्चे दानवीर, समाजसेवक, धर्मप्रचारक बाबू देवकुमारची, कानपुर से बाबू नवलकिशोर वकील, ग्वालियर से श्रीयुत बनारसीदास बी, लखनऊ से श्री सीतलप्रसादबी (ब्रह्मचारी), गोकुलचन्दराय वकील तथा बाबू देवीप्रसाद (मेरे पिताजी) पधारे थे। निम्न प्रान्तीय शाखाओं की स्थापना हुई और उनके मन्त्री नियुक्त हुए। पंजाब-हरिश्चन्द्र जी टैक्स सुपरिन्टेन्डेन्ट, लाहौर बंगाल- जैनेन्द्र किशोर बी, बारा यू. पी.- चन्दूलाल वकील, सहारनपूर मदरास-ए. दुरहस्वामी राजपूताना-मांगीलालजी, नसीराबाद सी. पी-हुकुमचन्दजी, छपारा बम्बई-श्रीयुत अन्नपा यावप्पा चौगुले, वकील बेलगाँव बाब देवीप्रसाद बी ने प्रतिवर्ष ऐसे जैन विद्यार्थी को स्वर्णपदक "मनभावती देवी" ( मेरी मातेश्वरी) के नाम से प्रदान करने को कहा जो संस्कृत भाषा के साथ मैट्रीकुलेशन परीक्षा में सर्वोच्च नम्बरों से उचीर्ण हो । यह स्वर्णपदक कई वर्ष तक दिया गया। फिर पदक देने की प्रवृत्ति ही बन्द हो गई। इसी अधिवेशन में जैननयुवक स्वर्गीय श्रीयुत बन्चूलालची इलाहाबाद निवासी के स्मारक रूप ऐसा ही स्वर्णपदक, ऐसी ही शर्त से . दिये जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुश्रा, और उसके लिये ५०)का चिट्ठा हो गया । यह पदक भी कुछ वर्ष तक ही दिया गया। "विधवा सहायक कोष" की स्थापना भी इसी अवसर पर हुई। भीयुत बाबू देवकुमार, किरोडीचन्द, जैनेन्द्र किशोरची के प्रयत्न से प्रारा में नैन सिद्धान्त भवन और बनारस में स्थाबाद महाविद्यालय कायम हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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