Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कषायमकरणम् ]
चतुर्थो भागः
मूंग और मुलैठीका क्वाथ या शीत कषाय (५०४४) मुष्ककादिगणः पीनेसे पित्तज्वर नष्ट होता है।
(वा. भ. सू. अ. १५; सु. सं. अ. ३८) (५०४१) मुद्गादिशीतकषायः मुष्ककस्नुग्घराद्वीपिपलाशधवशिंशपाः । ( ग. नि. । रक्तपित्ता. ८: वृ. नि. र. । रक्तपित्ता.: गुल्ममेहाश्मरीपाण्डुमेदोऽर्श:कफशुक्रजित ।। . च. सं. चि. अ. ४ रक्तपित्त.)
____ मोखा ( मुष्कक ) वृक्षकी छाल, थूहर मुद्गाः सलाजाः सयवाः सकृष्णाः
( सेंड-सेहुंड ), हर्र, बहेड़ा, आमला, चीता, ढाककी सोशीरमुस्ताः सह चन्दनेन ।
छाल, धवकी छाल और शीशमका बूरा (चूर्ण); बलाजले पर्युषितः कपायः
यह ओषधिसमूह गुल्म, प्रमेह, अश्मरी, पाण्डु, __स रक्तपित्तं शमयत्युदीर्णम् ॥
मेद, अर्श, कफ और शुक्र-दोषोंको नष्ट करता है। ५ तोले खरैटीको ४० तोले पानीमें पकायें।
(नोट-सुश्रतमें मैनफल अधिक लिखा है।) जब २० तोले पानी शेष रहे तो छानकर उसमें
(५०४५) मुस्तकमूलयोगः रातको मूंग, धानकी खील, इन्द्र जौ, पीपल, खस,
( यो. र.; वृ. नि. र. अपरमारा.) नागरमोथा और .लाल चन्दन समानभाग मिश्रित उत्तरदिग्गतमुस्तकमूलं बुद्धथा समुद्धृतं पेष्य । ३ तोले लेकर कूटकर भिगो दें और दूसरे दिन पीतं पयसा हन्यादपस्मृति गोः सवर्णवत्सायाः प्रातःकाल मलकर छान लें ।
उत्तर दिशामें उत्पन्न हुवे नागरमोथेकी इसे पीनेसे प्रबल रक्तपित्त भी नष्ट हो जाता है। ताजी जड़को समान रंगके बछड़ेवाली गायके दूधमें (५०४२) मुद्गामलकयूषः पीस कर पीनेसे अपस्मार नष्ट होता है। (३. मा. छ.)
(५०४६) मुस्तककाथः मुद्दामलकयूषो वा ससर्पिष्कः ससैन्धवः ॥
( ग. नि. अतिसारा. ३) मूंग और आमलेके क्वाथमें घी तथा सेंधा क्वाथश्च मुस्तककृतः समधुः सुशीतः नमक मिलाकर पीनेसे छर्दि (वमन) रुक जाती है। पीतः प्रवृद्धमतिसारगदं निहन्ति । (५०४३) मुशल्यादियोगः ___ नागरमोथे के क्वाथको अच्छी तरह ठण्डा (भै. र. ग्रहण्य.)
करके उसमें शहद मिला कर पीनेसे प्रवृद्ध अतिमुषली पेषयेत्तकैरथवा तण्डुलोदकैः। सार भी नष्ट हो जाता है। माकं योजयेच्चानु पथ्यं तक्रोदनं हितम् ॥ (५०४७) मुस्तादिकाथः (१)
१ माशा मूसलीको तक या चावलेकि पानीके (रा. मा. घरा. २०) साथ पीसकर पीनेसे ग्रहगीरोग नष्ट होता है। पिवन्ति येऽब्दयवासकबालकान् पथ्य-तकभात ।
सकटुकांश्च महौषधसंयुतान् ।
For Private And Personal Use Only