Book Title: Bhamashah
Author(s): Dhanyakumar Jain
Publisher: Jain Pustak Bhavan

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Page 13
________________ मंथन आज का भौतिकवादी युग हिंसात्मक उपायों से विश्व में शान्ति की स्थापना करना चाहता है। उसने धारणा बना ली है कि अहिंसा कायरता की जननी है । और अहिंसा के अनुयायी पराधीनता के प्रेमी। अहिंसा का पुजारी भी आवश्यकता पड़ने पर स्वाधीनता संग्राम का प्रमुख सेनानी बन सकता है, यह कथन उसे मात्र कल्पना प्रतिभासित होता है, पर यदि वह क्षण भर के लिये अपनी इस मिथ्या धारणा को भूलकर गम्भीरता से अध्ययन और चिन्तन करे तो उसे ज्ञात हो जाय कि इतिहास का भण्डार, जहां हिंसा के उपासक कर आक्रमणकारियों की नृशंसतापूर्ण कथाओं से सम्पन्न है, वहां उसमें अहिंसा के अनुयायी शान्ति-प्रिय स्वदेश-से वियों की त्याग-गाथाओं का भी अभाव नहीं । ऐसे अहिंसा-भक्त भारतीय वीरों ने शत्रुबल का विध्वंस करने के लिये कमी हिंसा को अपना शस्त्र नहीं बनाया पर वे स्वदेश-रक्षा के लिये आवश्यकता पड़ने पर अहिंसा की दुहाई देकर अन्तःपुर में भी नहीं बैठे रहे। उन्होंने शत्रु के देश पर अधिकार जमाने के लिये नहीं; अपने देश की स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखने के लिये--विधर्मी शत्रदल को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये नहीं, अपने धर्म को सुरक्षित रखने के लिये-और शत्रु दल की सुन्दरियों के साथ दुराचार करने के लिये नहीं; अपनी मां बहिनों के सतीत्व की प्रतिष्ठा रखने के लिये रक्षास्त्र धारण किया। ऐसे ही अहिंसाभक्त भारतीय वीरों में भामाशाह का नाम सर्वप्रथम स्मरणीय है। दानवीर भामाशाह ने मेवाड़-उद्धार के हेतु कितना महान त्याग किया है, यह किसी भी इतिहास-प्रेमी से छिपा नहीं । पर आज ऐसे कितने व्यक्ति हैं जो प्रतापी प्रताप की आभा से प्रभावित हो भामाशाह का भी यथार्थ दर्शन कर सके हों। निस्सन्देह ऐसे व्यक्तियों की संख्या अंगुलियों पर गणनीय है, जो एक इतिहास-प्रेमी देश के लिये लज्जा का विषय है।

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