Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti View full book textPage 7
________________ विद्या में इन्हें तंत्र-मंत्र-यंत्रादि शब्दों से निरूपित किया है। सामान्य प्रशिक्षिस जनता दैनिक व्यवहार में इन्हें तन्तर, मन्तर. जन्तर कहती है बालबोध की दृष्टि से समझा जा सकता है कि तन्तर = (तंत्र) वह है। जो तनु-शरीर को-तरावट, पुष्टि-सुख-वृद्धि-प्रोज-शक्ति-वृद्धि दायक हो वह ही तंत्र है, इसी प्रकार मन्तर= (मंत्र) वह शक्ति-विद्या-ध्वनि, वाणी, बीज अक्षर-शब्दवर्गणा है जो मन को प्रसन्न मस्त, आल्हादित करें एवं मस्ती में-मौज में डुबो दे तदनुसार ही जन्तर -जंत्र-(यंत्र) वह है जो यन्त्र या वाहन, यथासमय, हमें अपने निर्दिष्ट गंतव्य स्थल लक्ष्य, उद्देश्य अथवा मंजिल-मुकाम पर पहुंचा देवे। इस प्रकार ये तीनों ही (तंत्र-मंत्र-यंत्र) शरीर और मन को यथास्थिति आत्ममय कोष में अर्थात्शुद्ध सच्चिदा नंद-आत्मस्वरूप में स्थित करते हैं, एवं मानव की मुक्ति के कारण हैं। जीवन-जगत की समस्याओं से जीवमात्र को वाण देना एवं मानव की लौकिक-दैविक, दैहिक आधिभौतिक समस्याओं को हल करके उसे आत्मस्वरूप में स्थित करना ही कल्प एवं तंत्र-मंत्र-यंत्रागम शास्त्रों का उद्देश्य है । एतद्विषयक जैन शास्त्रागारों में विपुल सामग्री अप्रकाशित बिखरी पड़ी है। विद्यानुवादपूर्व लघुविद्यानुवाद पूर्व, चक्रेश्वरी कल्प, ज्वालामालिनी कल्प, भक्तामर-मंत्र-तंत्र-यंत्र कल्याणमंदिर, विषापहारादि के अनेक कल्प श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों प्राम्नायों में तो हैं ही; यति, भट्टारक एवं तारण पंथी साहित्य में भी हैं। इसी कड़ी में सर्वाधिक प्रभावशाली-प्रसिद्ध-भैरव पद्मावती कल्प है जो प्रस्तुत कृति आपके सम्मुख है । जिस प्रकार परमाणु परागों के आकर्षण, विकर्षण, मिलन विघटन एवं सम्मेलन से जगत के नाना नवीन पदार्थों रूपों शरीरों की उत्पत्ति एवं सृष्टि होती है एवं उनकी शक्ति-प्रभाव और स्वरूप भी भिन्न भिन्न होता है, उसी प्रकार रसों, गंधों, वर्गों, जड़ी बूटियों, बनस्पतियों के 'पारस्परिक' मिलन से अनेक औषधियाँ-रस-मात्राएँ एवं प्रासब, अरिष्ट, अवलेह, बनाते हैं एवं समय विशेष तथा किरणों के प्रभाव सूर्य-चंद्र-राह-केतू ग्रहण-पर्व-योग के समय ये हो-प्रोधियाँ, रस एवं जड़ी बूटियाँ एवं इनके तिलक, लेप, प्रयोग अनेक प्रकार की अद्भुत शक्ति सम्पन्नता प्राप्त करके सम्मोहक, विद्वेषक, उच्चाटक, मारक, वशीकर्ता बन जाते हैं।Page Navigation
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