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भगवतीसुत्रे
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तत्र आज्ञास्यात्, यथा तस्य तत्र धारणास्यात्, धारणया खलु व्यवहारं प्रस्थापयेत् नो च तस्य तत्र धारणा स्यात् यथा तस्य तत्र जीतं स्यात्, जीतेन व्यवहारं प्रस्थापयेत् । इत्येतैः पञ्चभिः व्यवहारं प्रस्थापयेत् तथा-भागमेन श्रुतेन,
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आज्ञया, धारणा, जीतेन, यथा यथा तस्य आगमः, श्रुतम्, आज्ञा, धारणा, जीतम्, तथा तथा व्यवहारं प्रस्थापयेत्, अथ किमाहुः भदन्त । आगमवलिका
धारणाए णं वबहारं पटुवेज्जा ' यदि वहां पर श्रुत न हो तो जैसी वहां आज्ञा हो उस प्रकार से उसे वहां व्यवहार चलाना चाहिये । यदि वहां आज्ञा भी न हो तो जिस प्रकार से वहाँ धारणा हो उस प्रकार से व्यबहार चलाना चाहिये । ( णो य से तत्थ धारणा लिया, जहा से तत्थ जीए सिया, सीए णं वनहरं पवेज्जा ) यदि वहाँ पर धारणा भी न हो तो जिस प्रकार से उसके पास जीत हो उस जीत से उसे अपना व्यबहार चलाना चाहिये । ' इच्चेएहिं पंचाहिं बवहारं पट्टवेज्जा' इस तरह के इन पांच व्यवहारों द्वारा व्यवहार चलाना चाहिये । ' तं जहा - आगमेणं, सुरणं, आणाए, धारणाए, जीएणं, जहा से आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए, तहा तहा, बवहारं पड़वेज्जा' जैसे - आगम से, श्रुत से, आज्ञा से, धारणा से और जीत से जैमा जैसा उसके पास आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा, जीत हो, वैसा वैसा उसे व्यवहार चलाना चाहिये । ( से किमाह भंते! आगनबलिया समणा निरगंधा ) हे भदन्त !
से तत्थ धारणा सिया, धारणाए णं ववहार' पटुवेज्जा ) ले त्यां श्रुतना साधार મળે તેમ ન હાથ, તે જેવી ત્યાં આજ્ઞા હાય તે પ્રમાણે વ્યવહાર ચલાવવે જોઇએ. જો ત્યાં આજ્ઞાને આધાર પણ લઈ શકાય તેમ ન હેાય તે ત્યાં જેવા प्राश्नी धारणा होय, ते प्रमाणे व्यवहार न्याववो हमे ( णो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएण वबहार पट्टवेज्जा ) ले त्यां ધારણાના આધાર પણ મળે તેમ ન હેાય તે ત્યાં જે પ્રકારની જીત હાય, તે ♚तने आधारे पोताने। व्यवहार यसाववो लेभे ( इच्चेएहिं पचविवहार पट्टवेज्जा ) मा अहारना यांय व्यवहारो द्वारा व्यवहार यात्रा लेहये. ( त जहाँ भागमेण, सुरणं, आणाए, धारणाए, जीएणं, जहा जहा से आगमे, सुए, आणा, धारणा, जीए, नहाता ववहार पटुवेज्जा ) प्रेम - सागभथी, श्रुतथी આજ્ઞાથી, ધારણાથી અને જીતથી જેવાં જેવાં તેની પાસે આગમ શ્રુત, આજ્ઞા धारणा भने त होय, भेवा मेवा तेथे व्यवहार असाववा हो ( से