Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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५ शतके उद्देशः१ ॥३३८॥
|ए संबंधेनो बधो खुलासो वर्षानी पेठेज जाणवो अने एज प्रकारे ग्रीष्म ऋतुनो पण खुलासो समजवो. तथा हेमंत अने ग्रीष्मना ध्याख्या
प्रथम समयनी पेठे तेनी प्रथम आवलिका वगेरे यावत् ऋतु-सुधी पण समजवु-ए प्रमाणे एक सरलु एत्रणे ऋतुओ विषे जाणवू, प्रज्ञप्ति
ए बधाना मळीनं त्रीश आलापक कडेवा. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे जंबूद्वीपमा मंदर पर्वतना दक्षिणार्धमा प्रथम अयन होय छे ॥३३८॥ त्यारे उत्तरार्धमां पण प्रथम अयन होय छे ? [उ०] हे गौतम ! जेम समय संबंधे कड्यु, तेम अयन संबंधे पण समजवु यावत्-तेनो
प्रथम समय, अनंतर, पश्चात्कृत समये होय छे-इत्यादि जाणवू. .
जहा अयणेणं अभिलावो तहा संवच्छरेणवि भाणियब्वो, जुएणवि वाससएणवि वाससहस्सेणवि वाससयसहस्सेणवि पुब्वंगेणवि पुवेणवि तुडिंयगेणवि तुडिएणवि, एवं पुब्वे २ तुडिए २ अडडे २ अववे २ हहए २ उप्पले २ पउमे २ नलिणे २ अच्छणिउरे २ अउए २ णउए २ पउए २ चूलिया २ सीसपहेलिया २ पलिओवमेणवि सागरोवमेणावि भाणियब्बो । जया ण भंते ! जंबुद्दीवे २ दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवजह तयाणं उत्तरदेवि पढमा ओसप्पिणी पडिवजइ, जया णं उत्तरड्ढेवि पडिवजइ तदा णं जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पब्बयस्स पुरच्छिमपञ्चत्थिमेणवि, णेवत्थि ओसप्पिणी नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवहिए णं तत्थ काले पन्नत्ते ? समणाउसो, हंता गोयमा! तं चेव उच्चारेयब्वं जाव समणाउसो!, जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणिओ एवं उस्सप्पिणीएवि
| भाणियब्वो ।। ( सूत्रं १७७)॥ iPI जेम अयन संबंधे कपुं तेम संवत्सर, युग, वर्षशन, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्वांग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट,
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