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५ शतके उद्देशः१ ॥३३६॥
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पडिवज्जइ, जया णं उत्तरड्ढेवि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ तया णं जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिव्याख्या
मपञ्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडसमयंसि वासाणं प० स०प० १, हंता गोयमा ! जया णं जंबू०२ दाहिणड्ढे प्रज्ञप्तिः वासाणं प० स० पडिवज्जइ तह चेव जाव पडिबज्जइ । जया णं भंते ! जंबु. मंवरस्स० पुरच्छिमेणं वासाणं ॥३३६॥ पढमे स. पडिवज्जइ, तया णं पञ्चत्थिमेणवि वासाणं पढमे समए पडिवजइ, जया णं पञ्चत्थिमेणवि वासाणं
पढमे समए पडिवज्जइ तया णं जाव मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरदाहिणेणं अणंतरपच्छाकडसमगंसि वासाणं प०
स. पडिवन्ने भवति?, हंता गोयमा! जया ण जंबू. मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं, एवं चेव उच्चारेयवं Mजाव पडिवन्ने भवति ॥
प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे दक्षिणार्धमा वर्षा ( चोमासा ) नी मोसमनो प्रथम समय होय त्यारे उत्तराधमां पण वर्षानो प्रथम ६ समय होय अने ज्यारे उत्तरार्धमां पण वरसादनो प्रथम समय होय त्यारे जंबुद्वीपमां मंदर पर्वतनी पूर्व पश्चिमे वर्षानो प्रथम समय & समय अनंतर पुरस्कृत समयमा होय अर्थात् जे समये दक्षिणार्धमा वरसादनी शरुआत थाय छे तेज समय पछी तुरतज बीजा समये
मंदर पर्वतनी पूर्व पश्चिमे वरसादनी शरुआत थाय ? [उ०] हे गौतम ! हा एज रीते थाय-छे ज्यारे जंबूद्वीपमा दक्षिणार्धमां चोमा| सानो प्रथम समय होय त्यारे ते प्रमाणेज यावत्-थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे मंदर पर्वतनी पूर्व चोमासानो प्रथम समय ल होय छे त्यारे पश्चिममां पण चोमासानो प्रथम समय होय छे अने ज्यारे पश्चिममां पण चोमासानो प्रथम समय होय छे त्यारे | यावत्-मंदर पर्वतनी उत्तर दक्षिणे वर्षानो प्रथम समय, अनंतर पश्चात्कृत समयमा होय अर्थात् मंदर पर्वतनी पश्चिमे वर्षा शरु
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