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भगवान महावीर
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का ही समावेश किया गया है। इस पंथ मे साधारण गृहस्थलोग किसी खास नाम से प्रविष्ट नहीं किये गये हैं। यह स्पष्ट है कि साधारण जन समाज से किसी प्रकार का व्यवस्थित सम्बन्ध रखे बिना कोई भी भिक्षु-संघ स्थायी रूप से नहीं चल सकता। क्योकि, अपने सम्प्रदाय का अस्तित्व कायम रखने के लिये अपने अनुयायी गृहस्थजन-समुदाय से द्रव्य वगैरह की सहायता लेना आवश्यक होता है। पर अपनी अत्यन्त उदारता के कारण मनुष्य प्रकृति की कमजोरी की कुछ परवाह न करते हुए बौद्धों ने इस बात की कोई दृढ़ व्यवस्था न की । गृहस्थों को अपने संघ में विधिपूर्वक प्रविष्ट करने के लिये उन्होने कोई उपाय नहीं किया। उनके धर्म मे हर कोई प्रविष्ट हो सकता था, उसे किसी भी प्रकार की प्रतिज्ञा लेने की कोई आवश्यकता न होती थी। धर्मानुयायी गृहस्थों के लिए विधि-निषेध का कोई खास ग्रन्थ भी न था। उनके लिए किसी विशिष्ट प्रकार की धर्म क्रिया की व्यवस्था भी न थी । अच्छे और बुरे, सदाचारी और दुराचारी, सभी लोग बौद्धधर्म में आसानी से प्रविष्ट हो सकते थे। संक्षिप्त मे यो कह सकते है कि एक मनुष्य उनका अनुयायी होने के साथ साथ दूसरे धर्म का अनुयायी भी हो सकता था। क्योंकि उसके लिए किसी प्रकार के कोई खास नियम लागू न थे। "मैं बुद्ध के महासंघ में से एक हूँ। और उसकी धार्मिक क्रियाओं का यथेष्ट रीति से पालन करता हूँ।" इस प्रकार का धर्माभिमान रखने का अधिकार किसी बौद्धधर्म अनुयायी को न था। बौद्धधर्म की इसी उदारता के कारण उस समय अच्छे बुरे, बड़े छोटे उचे और नीचे सभी