Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 431
________________ ( ४७५ ) दिया ही जाता था, सर्दी के मौसम में वस्त्रहीनो को कम्बल, रजाइएं रूई की अँगरखिए बाँटी जाती थी इस तरह मौसिम २ का दान दिया जाता था । सेठ चाँदमल जी पूर्व स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी थे, साधु मुनिराज के प्रति उनकी अनन्य भक्ति थी । हर समय उनके हवेली पर धर्मध्यान होता ही रहता था, दीक्षा आदि भी आपकी तरफ से होती रहती थी, जीव दया तथा अन्य खातो में सब से अधिक रकम आपकी तरफ से लिखी जाती थी आप जिस धार्मिक कार्य में आगे बढ़ जाते थे उससे कदम कभी भी पीछे न हटाते थे चाहे उसमें लाख रुपये भी क्यों न खर्च हो जावे | यह आपका स्वभाव था इससे हर एक धार्मिक कार्य में सबसे आगे आपको किया जाता था । कान्फ्रेंस का प्रथम अधिवेशन जो मोरवी शहर में हुआ था, उसके आप सभापति थे, अजमेर में कान्फ्रेंस का चतुर्थ अधि वेशन हुआ उसमें अधिक श्राप ही का हाथ था और आपके हजारो रुपये उसमें व्यय हुए थे । कान्फ्रेंस आफिस कुछ वर्ष तक आपके यहां रहा था और उसमे आप बराबर योग देते रहे थे जैन जनता में आपका बड़ा मान है। आप जबरदस्त नेता गिने जाते थे। आपकी बात का बड़ा आदर था, जो बात आप की जवान से निकल जाती थी लोह की लकीर समझी जाती थी । आप बड़े धर्मिष्ट सदाचारी थे, प्रजा और राजा दोनो मे आपकी इज्जत थी और सम्मान की दृष्टि से देखे जाते थे, आपके सम्बन्ध में बड़े बड़े श्रहदेदार अंगरेजों के अच्छे २ सार्टिफिकेट दिये हुवे हैं उन सब का उल्लेख यहाँ नहीं किया जा सकता । केवल इतना

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