Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 413
________________ ४५३ भगवान् महावीर (१२) राय वहादुर पूनेन्दु नारायण सिंह एम०ए० वॉकीपुर लिखते हैं-जैनधर्म पढ़ने की मेरी हार्दिक इच्छा है क्योंकि मैं ख्याल करता हूँ कि व्यवहारिक योगाभ्यास के लिये यह साहित्य सबसे प्राचीन (Oldest) है । यह वेद की रीति रिवाजो से पृथक् है । इसमें हिन्दू धर्म से पूर्व की आत्मिक स्वतंत्रता विद्यमान है, जिसको परम पुरुषों ने अनुभव व प्रकाश किया है । यह समय है कि हम इसके विषय में अधिक जानें। (१३) महामहोपाध्याय पं० गंगानाथमा एम० ए. डी० एल. एल० इलाहाबाद-"जब से मैंने शंकराचार्य द्वारा जैन सिद्धान्त पर खंडन को पढ़ा है, तब से मुझे विश्वास हुआ कि इस सिद्धान्त में बहुत कुछ है जिसको वेदान्त के आचार्य ने नहीं समझा, और ,जो कुछ अव तक मैं जैन-धर्म को जान सका हूँ उससे मेरा यह विश्वास दृढ़ हुआ है कि यदि वह जैनधर्म को उसके असली प्रन्थों से देखने का कष्ट उठाता तो उनको जैन धर्म के विरोध करने की कोई बात नहीं मिलती। (१४) श्रीयुन् नेपालचन्दराय अधिष्ठाता ब्रह्मचर्याश्रम शांति निकेतन बोलपुर-मुमको जैन तीर्थंकरों की शिक्षा पर अतिशय भक्ति है। (१५) , श्रीयुत् एम० डी० पाण्डे, थियोसोफिकल सोसाइटी बना

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