Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

View full book text
Previous | Next

Page 414
________________ भगवान् महावीर ४५४ रस-मुझे जैन सिद्धान्त का बहुत शौक है, क्योकि कर्म सिद्धान्त का इसमें सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है। सम्मतियाँ नं० १२ से १६ जैनमित्र भाग १७ अङ्क १० वें से संग्रह की गई हैं। (१६) सुप्रसिद्ध श्रीयुत महात्मा शिवव्रतलाल वर्मन, एम० ए० सम्पादक "साधु", "सरस्वती भण्डार", "तत्वदर्शी", "मार्तड" "लक्ष्मीभण्डार, “सन्त सन्देश" आदि उर्दू तथा नागरी मासिक पत्र; रचयिता विचार कल्पद्रुम," "विवेक कल्पद्रुम," "वेदान्त कल्पद्रुम;" "कल्याण धर्म," "कवीरजीका बीजक" आदि ग्रन्थ, तथा अनुवादक "विष्णु पुराणादि"। __इन महात्मा महानुभाव द्वारा सम्पादित “साधु" नामक उर्दू मासिकपत्र के जनवरी सन् १९११ के अंक में प्रकाशित "महावीर स्वामीका पवित्र जीवन" नामक लेख से उद्धृत कुछ वादय, जो न केवल श्री महावीर स्वामी के लिये किन्तु ऐसे सर्व जैनतीर्थंकरों, जैनमुनियो तथा जैनमहात्माओ के सम्बन्ध मे कहे गए हैं। (१) “गए दोनों जहान नजरसे गुजर तेरे हुस्न का कोई बशर न मिला"। . (२) यह जैनियों के आचार्यगुरू थे। पाकदिल, पाकखयाल, सुजस्लम-पाकीजगी थे। हम इनके नाम पर, इनके काम पर ओर इनके बे नजीर नफ्सकुशी व रिाजत की मिसालपर, जिस कदर नाज (अभिमान) करें बजा (योग्य ) है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435