Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 417
________________ ४५७ भगवान् महावीर भूत कर लिया, इसके पश्चात् बहुत समय तक इन क्षत्रिय उपदेशको के प्रभाव बल से ब्राह्मणो की सत्ता अभिभूत हो गई थी। (२०) टी० पी० कुप्पुस्खामी शास्त्री एम. ए. असिसटेन्ट गवर्नमेंट म्युजियम तंजौर के एक अंग्रेजी लेख का अनुवाद "जैन हितैपी भाग १० अंक २ में छापा है उसमें आपने बतलाया है कि: (१) तीर्थकर जिनसे जैनियों के विख्यात सिद्धान्तों का प्रचार हुआ है आर्य क्षत्रिय थे। (२) जैनी अवैदिक भारतीय-बाय्यों का एक विभाग है। (२१) श्री स्वामी विरुपाक्ष वढियर 'धर्म भूपण' 'पण्डित' 'वेदतीर्थ 'विद्यानिधी' एम. ए. प्रोफेसर संस्कृत कालेज इन्दौर स्टेट। आपका "जैन धर्म मीमांसा" नाम का लेख चित्रमय जगत में छपा है उसे 'जैन पथ प्रदर्शक' आगरा ने दीपावली के अंक में उद्धृत किया है उससे कुछ वाक्य उद्धृत । (१) ईर्पा द्वेष के कारण धर्म प्रचार को रोकने वाली विपत्ति के रहते हुए जैन शासन कमी पराजित न होकर सर्वत्र विजयी ही होता रहा है। इस प्रकार जिसका वर्णन है वह 'अहतदेव' साक्षात् परमेश्वर (विष्णु) खरूप है इसके प्रमाण भी आर्य ग्रन्थों में पाये जाते हैं। (२) उपरोक्त अहंत परमेश्वर का वर्णन वेदों में भी पाया जाता है। (३) एक बंगाली बैरिष्टर ने 'प्रेकटिकलपाथ' नामक ग्रन्थ बनाया है। उसमें एक स्थान पर लिखा है कि रिपमदेव का नाती

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