Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 423
________________ ४६३ मगवान् महावीर एक लेख बुद्धिष्ट रिव्यु ना पुस्तक 'प्रंक १ मां प्रगट थयेला अहिंसा प्रने वनस्पति प्रहार शीर्षक लेस का गुजराती अनुवाद जैन माहित्य संशोधक अंक ४ में छपा है उसमें से कुछ वाक्य उद्धृत। (१) अनिवारे आस्तीन धरावतां धमा मां जैन-धर्म एक वो धर्म के के जमां अहिंसा नो क्रम संपूर्ण दे अने जो शक्य तेटली दृढ़तायी सदा तेने वलगी रह्यो छे।। (२) प्रामण धर्म मां पण घालावासमय पच्छी संन्यासियो माटे पा सुक्ष्मतर अहिंसा विदित थई 'प्रने आखरे वनस्पति आहार ना रूप मां ब्राह्मण नाति मां पण ते दाखील थई हती कारण ग्छ के जैनो ना धर्म तत्वोए जे लोक मत जीत्यो हतो तेनी असर सजड रीत वधती जती हती, (३१) श्रीयुत बाबू चम्पनरायजी जैन चरिस्टर एट-ला हरदोई सभापति, श्री म० दि० जैन महासभा का ३६ वां अधिवेशन लम्बन ने अपने व्याख्यान में जैन धर्म को बोद्ध धर्म से प्राचीन होने के प्रमाण दिये हैं उससे उद्धत । (१) इन्सायटोपडिया में मोरुपीयन विद्वानो ने दिखाया है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से प्राचीन है और बौद्ध मत ने जैन धर्म से उनकी दो परिभाषाएँ आश्रव व संवर लेली है अंतिम निर्णय इन शब्दों में दिया है कि जैनी लोग इन परिभाषाओं का भाव शब्दार्थ में समझते हैं और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग के संबंध में इन्हें व्यवहृत करते हैं (आश्रयो के संवर और निर्जरा से मुक्ति प्राप्त होती है) अव यह परिभाषाएँ उतनी ही प्राचीन हैं जितना कि जैन धर्म है।

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